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प्यास- एक कविता

प्यास अन्तर्तम के दोषों को पहचानें,अपने मन को निर्मल कर डालें। खुद से खुद को लड़ना सीखें,सब बुरी आदतों को तज डालें। प्यास जगायें सत्कर्मों की,नित कुछ नव कर्मों की आदत डालें। स्वार्थ तजें परस्वारथ में,तन मन धन सब अर्पण कर डालें। रचनाकार- राजेश कुमार,  कानपुर

एक नई खोज- जानकारी

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कीजिये उड़ने वाली बाइक का इंतजार न्यूयार्क , अमेरिका की एक कंपनी ने वर्ष 2017 तक उड़ने वाली मोटरसाइकिल बाजार में उतारने की योजना बनाई है। इसका डिजाइन दो लोगों के बैठने के हिसाब से तैयार किया गया है।। दस फुट की ऊंचाई पर यह 72 कि0मी0 प्रति घंटे की रफ्तार से उड़ सकेगी।कैलीर्फोनिया स्थित कंपनी ने घोषणा की है कि यह एयरो-एक्स होवर बाइक वर्ष 2017 में बाजार में उतारेगी और इसकी कीमत 85 हजार डॉलर (करीब 49.7 लाख रुपये) होगी। कंपनी ने अपनी वेबसाइट पर पांच हजार डॉलर (करीब 2.9 लाख रुपये) में बाइक की एडवांस बुकिंग भी शुरू कर दी है।। यह धनराशि बाद में वापस कर दी जायेगी।गिजमैक की रिपोर्ट्र के मुताबिक कम्पनी काफी समय से बाइक का परीक्षण कर कुछ चुनौतियों  को हल करने का प्रयास कर रही है।बाइक में पहिये की जगह कार्बन फाइबर रोटर्स लगाये गये हैं।जिसकी मदद से एयरो.एक्स बिना रनवे के उड़ान भरने और लोड करने में सक्षम होगी। कंपनी के बयान के मुताबिक, होवरबाइक आम बाइक की तरह ही चलेगी। एक दो दिन की ट्रेनिंग के बाद कोई भी व्यक्ति इसे आसानी से चला सकेगा। रिपोर्ट के मुताबिक, बाइक का वजन 356 किलो है और यह 140 किलो तक का

कर्तव्य पालन- एक कविता

कर्तव्य पालन जब जग में है जन्में,सत्कर्मों से जीवन सफल करें। जग में हैं काज बहुत,उनमें इक अपना काज चुनें। काज चुनें कुछ ऐसा ही, जो बेहतर ढंग से कर पायें। अपनी रुचियों का ख्याल करें,कुछ वैसा ही काम चुनें। फिर जो भी मिले काम,तन मन धन से परिपूर्ण करें। जब तक मिले न सफलता,अपना प्रयास जारी रखें। कौये जैसा कर प्रयास, बगुला समान ही ध्यान धरें। हैं हीरे मिलते गहराई में,मोती मिलते हैं मुश्किल से। तन मन सब करें समर्पण,तब सफलतायें कदम चूमे। निज कर्मों में रस खोजें,उस रस का ही नित पान करें। दुख में भी जब सुख ढूढ़ें,तब दुख से सुख बन जायेंगे। मजे मजे से काज करें,अरु काज काज में मजे करें। काज नहीं हो सकते निष्फल,जो काज हैं दिल से होते। मन में है चाह सफलता की,तो आन बान तज काज करें। रचनाकार- राजेश कुमार,  कानपुर

उड़ान नन्हें कदमों की - एक कविता

उड़ान नन्हें कदमों की आ नन्हें नन्हें पैरों से हम तुझको चलना सिखलायें। इन नन्हें पैरों से ही तू चाँद सितारों तक हो आये। विद्यामंदिर चलकर जाये मैडम क्यूरी तू बन जाये। तुझको आसमान तक जा कर ऊँची कूद लगाना है। तेरा सफर दूर शिखर में तू भरे उड़ानें दूर गगन तक। तोड़ बेड़ियाँ इस समाज की तू चमके दूर सितारों में। बेड़ी तोड़े कड़ियां जोड़े बंद दरों की सांकल खोले। तेरा नाम गगन में छाये तू बने सितारा अंतरिक्ष में। जुड़े हमारा नाम में तेरे तू ही हमरी पहचान बन जाये। बैसाखियाँ हमारी तुम बन जाना जब हम बूढ़े हो जायें । तेरे कंधों के ही सहारे जग निर्वाण हमारा हो जाये। है तुमको आशीष हमारा हमरी उमर तुम्हें लग जाये। रचनाकार- राजेश कुमार,  कानपुर

छुपे भेड़िये- एक कविता

छुपे भेड़िये मात पिता के लाड़ले छौने,पल पल देखें हर्षित होते। तिनका तिनका जुटा जुटाकर,पंछी अपना नीड़ सजाते। कठिन साधना करते करते,छौने निशदिन बढ़ते जाते। घिसट घिसटकर चलना सीखें,मीठी मीठी बोली बोलें। उनकी इक मुस्कान की खातिर,माँ उनपर बलिहारी जाती। दुनियादारी का पाठ सीखने,विद्यालय का रुख वे करते। बस ड्राइवर आया चपरासी,शिक्षक सब हैं प्यारे लगते। पर उनमें कुछ छुपे भेड़िये,वो भी उनको प्यारे लगते। उन्हें खदेड़े जंगल भेजें,छौने सुख की साँस ले सकें। दिव्या प्रद्युमन जैसे बच्चे आहें भरकर दम ना तोड़ें। रचनाकार- राजेश कुमार,  कानपुर

मन की टीस- एक कविता

मन की टीस मनभावनि प्रिय तुम आय गयीं मन में थी भरी सब टीस हरायी। थी जब तक तुम आयी नहीं अंखियन में भरी थी उदासी छायी। मुख बोलत कछु नहिं अँसुआ दृग ढारत मग माहिं परत पग नाहीं। राह तकत थकती अंखियाँ मन माहि कसक नहिं टारत जायी। रचनाकार- राजेश कुमार,  कानपुर

एक एहसास- एक कविता

एक एहसास मैंने चाहा था, चमन में बहारें आयें। खिलें फूल कलियों में मुस्कानें छायें। दमके ये चमन सारी फिजायें महकें। मैंने बोये थे बीजे फूलों की खातिर। लगायी थी कलमें,खुशबू की खातिर। मन में कसक न थीं कमियां कोई। पर फिर भी उनमें फूलों की जगह। छा जाती ही रही कांटों की बहारें । जो भी चाहें दिल में,हसरत पालें। ये जरूरी नहीं कि हों हसरतें पूरी। हसरतें पूरी हों या अधूरी रह जायें। पर इसका मतलब तो ये नहीं। कि फूलों की जगह कांटे बोयें। गर चाहें हो अच्छा सा सफर। न हो तूफानों से कोई टक्कर। गांठें दोस्ती उसे हमराह बनालें। रचनाकार- राजेश कुमार, कानपुर

15वर्षीय बालक ने स्विस सेना के चाकू को अंतरिक्ष में भेजा

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15 वर्षीय बालक ने स्विस सेना के चाकू को अंतरिक्ष में भेजा बर्लिन ज्यूरिख के 15 वर्षीय  बालक ने स्विस  सेना के एक चाकू को समताप मंडल में  भेजने का कारनामा कर दिखाया  है। उसने उड़ान को रिकार्ड  करने के लिये कैमरायुक्त एक उच्च  ऊंचाई तक जाने वाले मौसम गुब्बारे  का इस्तेमाल किया। 'द लोकल ' की रिपार्ट के अनुसार, यह सफलता शमूएल हेस को 15 फरवरी को हासिल हुई, जब उसने स्विटजरलैंड के ज्यूरिख के केंटन में स्थित एडिकोन से   मौसम गुब्बारे को छोड़ा। तीन मीटर का यह गुब्बारा कैमरा, ग्लोबल पोजीशनिंग सिस्टम (जीपीएम) एक पैराशूट व केबल से संलग्न स्विस आर्मी  के एक चाकू से युक्त था। करीब डेढ़ घंटे में बैलून तीस हजार मीटर की ऊंचाई पर समताप मंडल में पहुंच गया।इस ऊंचाई पर उम्मीद के अनुसार गुब्बारा फट गया और कैमरा व चाकू सहित पेलोड के साथ पैराशूट पृथ्वी पर लौट आया। इस दौरान कैमरा ने समताप मंडल तक चाकू के पहुंचने व लौटने की तस्बीर ली। चाकू स्विटजरलैंड के दक्षिणी कस्बा जर्मन में आकर गिरा।                                                   

शक्तिस्वरूपा माँ भवानी-एक कविता

शक्तिस्वरूपा माँ भवानी नित नव पड़ते आघातों से, मानवता है सिसक रही। साम्राज्यवाद अलगाववाद आतंकवाद के बिषधर पनपे। भ्रष्टाचार दुराचार औ लूटमार से जनता है कराह रही। बढ़ा प्रदूषण कटते जंगल है मारामारी जनसंख्या की। इन बढ़ते भारी भारों से वसुंधरा नित सिसक रही। बिषमताओं का नागपाश इस जग को है निगल रहा। जगज्जननी शक्तिस्वरूपा मैं तुम्हरा नमन कर रहा। पुनःभवानी हों अवतरित,दारुण दुःखों का नाश करें। दानव जो भी हैं पले बढ़े, उन सबका वो संहार करें। अमीर गरीब की ढहें दीवारें,आनन में मुस्कान भरें। पलें बढ़ें और पढ़ें सभी,अज्ञानी तम का नाश करें। रचनाकार- राजेश कुमार,  कानपुर

चार आंखों वाली मछली- एक अजूबा

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चार आंखों वाली मछली प्रकृति ने वाकई एक से एक हैरान कर देने वाले जीवों को बनाया   है। ये जीव अपनी खासियत से सबको हैरान कर देते हैं। हम यहां बात कर रहे हैं एक ऐसी ही मछली के बारे में जिसके एक या दो नहीं बल्कि चार आंखें हैं  और वो किसी शीशे सी पारदर्शी है। हम बात कर रहे हैं ग्लासहेड बारर्ले फिश के बारे में जो समुद्र में 800 से 1000 मीटर के अंदर रहती है। आमतौर पर किसी भी मछली के दोनों तरफ एक आंख होती है। लेकिन ग्लासहेड मछली के दोनों तरफ तरफ दो बड़ी और चमकीली आंखें होती हैं। यह मछली द. अफ्रीका के केपटाउन के नजदीक स्थित पूर्व अटलांटिक महासागर में पाई गई हैं। ये मछलियां आस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड के बीच सागर में भी मिलती है। वैज्ञानिकों का कहना है कि गहरे पानी में रहने वाली ये चार आंखों वाली मछलियां अपनी आंखों से एक ही बार में चार जगह देख सकती है। सामने की दो आंखों से ये मछलियां अपने आगे के शिकार का पीछा करती हैं। जबकि पीछे की दो आंखों से वो अपने बगल में चल रही गतिविधियों और पानी में और नीचे चल रहे चीजों को एक साथ देख सकती हैं।

मानव अंगों की तिजारत- एक कविता

मानव अंगों की तिजारत ऋषि दधीचि ने परस्वारथ में, निजकाया का दान किया। बज्र बना ब्रह्मास्त्र बना,और उनसे दुष्टों का संहार हुआ। प्रभु ने देकर सुंदर काया ,इस जग में सबको भेज दिया। मानवता रथ सभी खींचकर, सब अपना हैं जीवन जीते। खायी कसमें मानवता की,मिली डिग्रियाँ जनसेवा में। कसमों को कर दरकिनार, ये आज कसाई हैं बन बैठे। कुछ नरभक्षी निज स्वारथ में,मानवअंगों का व्यापार करें। काटें मजलूमों के किडनी लीवर,उनका जीवन महरूम करें। बने फरेबी देकर धोखा,खूनी और दरिंदे हैं बन बैठे। लालच स्वारथ में बने वो अंधे,मौत के मुँह में उन्हें डालते। ओढ़ फरिश्तों का चोला,ये गर्दन पर हैं छुरी रेतते। मानवता के ये हैं दुश्मन,इनकी तृष्णा पर वार करो। पोलें खोलें करें उजागर,इन दुष्टों को मिले सजायें। इनकी सजा मौत से बदतर, तिल-तिल कर इनको तड़पायें। रचनाकार- राजेश कुमार, कानपुर

कुत्ता बना पायलट, 22 घंटे उड़ाया विमान

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कुत्ता बना पायलट, 22 घंटे उड़ाया विमान अगर आपसे कहा जाये कि एक कुत्ते ने विमान उड़ाया तो आप विश्वास नहीं करेंगे, लेकिन ये बिलकुल सच है।इस कुत्ते ने अपने पंजों से जेट विमान के कंट्रोल को पकड़ कर रखा।जमीन से तीन हजार फुट की ऊँचाई पर हवा में आठ का अंक भी बनाया।यह वाकई बहुत अद्भुद नजारा था।स्टैफोर्डशायर के बुल टैरियर कोली उन तीन डागीज में से एक हैं, जिन्हें स्काई-1 सीरीज की डाग्स माइट फ्लाइट के तहत फ्लाइट स्कूल में ट्रेनिंग दी गयी थी।एयरक्राफ्ट्स के कंट्रोल इस  तरह परिवर्तित किये गये थे कि कुत्ता अलग अलग आवाजों पर प्रतिक्रिया देने के लिये बटनों को दबा सके।इस साहसी डाग को छोड़ दिये गये हजारों आवारा डागीज में से चुना गया था।इसने 22 घंटों की उड़ान पूरी की।एनिमल एक्सपर्ट शार्लेट विल्डी ने कहा कि हमने अपना शो यह दिखाने के लिये तैयार किया है कि डागीज में एक्सट्रा आर्डिनेरी क्षमतायें होती हैं और फ्लाइट में सीमित टेस्ट होते हैं।हर साल करीब 5000 डागीज को अकेला छोड़ दिया जाता है।मगर, इस कार्यक्रम के जरिये हम यह दिखाना चाहते हैं कि जानवर भी बहुत बुद्धिमान होते हैं।

हिन्दी दिवस पर विशेष प्रस्तुति- एक कविता

हिन्दी दिवस पर हार्दिक बधाईयाँ व शुभकामनायें हिन्दी दिवस पर विशेष प्रस्तुति हिन्दी में समझायेंगे सूदखोर सेठ कारिन्दे से बोला शकल नहीं दिखाई मुलुआ ने तबसे करजा लेकर गया वो जब से मूल की छोड़ो सूद भी दिया नहीं उसने जाओ पकड़ खींचकर उसको ले आओ मैं उसको हिन्दी में समझाऊँगा.... मैं उसको............ मालिक अपने नौकर से कुछ यूँ बोला तू करता रहता है मटरगश्ती दिन रात लत लगी है तुझे हरामखोरी की गर बदला नहीं तूने अपना ये रवैया मैं तुझको हिन्दी में समझाऊँगा ...... मैं तुझको हिन्दी........... मकान मालिक बोला अपने किरायेदार से नहीं चुकाया किराया तीन महीनों का हो तुम्हारी कैसी भी मजबूरी मुझको नहीं उससे कोई सरोकार जल्द चुकता करो किराया वरना मैं तुम्हें हिन्दी में समझाऊँगा....... मैं तुम्हें हिन्दी...... बहू बोली सास से आज कल लगता नहीं तुम्हारा मन किसी काम में कल डाल दिया था दाल में नमक ज्यादा साड़ी भी मेरी ठीक से तह कर सकती नहीं गर हाल यही यदि रहा आपका मैं आपको हिन्दी में समझाऊँगी...... मैं आपको हिन्दी...... बेटा बोला बाप से कब से हूँ मैं कह रहा दिलवाओ मुझको एंड्रायड सेलफोन जूँ भी नहीं रेंगती है का

पढ़ें बेटियाँ - बढ़ें बेटियाँ- एक कविता

पढ़ें बेटियाँ - बढ़ें बेटियाँ घर आँगन की फुलवारी में,दो ही किस्म के फूल हैं खिलते। लाली लल्ला दोनों ही हैं,मात पिता की आँख के तारे। बेटा बेटी होते प्यारे,जननी जनक के दुलारे होते। एक समान हैं बेटा बेटी ,लाड़ दुलार एक सा पाते। साथ साथ हैं पलते बढ़ते,फुलबगिया को हैं महकाते। गर समान ही पालन पोषण,लाली बढ़ती नाम कमाती। बेटे से परिवार सँवरता,पर बेटी तो दो परिवार सँवारे। घर में भी वो करे पढ़ाई,माँ के काम में हाथ बंटाये। अगली पीढ़ी का सृजन है उससे,सपने वो साकार है करती। मूरख और अभागे हैं वो,बेटा बेटी में जो भेद हैं करते। इंदिरा मेधा अरुंधती बन,जग में ऊँचा नाम कमायें। सिंधु गट्टा बनें सानिया ,दुनिया से ये जा टकरायें। बनें सुनीता और कल्पना,परी लोक की सैर कर आयें। अंशिका जो है मेरी बेटी,पढ़ लिख कर है नाम कमाया। पायी डिग्री बनी डाक्टर,सेवा कर है यश फैलाया। दुनिया के हर कोने में है,वो अपना परचम लहराये।   रचनाकार- राजेश कुमार,  कानपुर

रोहिंग्या मुस्लिम शरणार्थी- एक कविता

रोहिंग्या मुस्लिम शरणार्थी मानव मानव में कहाँ भेद,सब धरती की संतानें हैं। तू हिंदू है तू मुस्लिम है,तू सिख तू निरा इसाई है। धरती में है जन्म लिया,काया में कोई भेद नहीं है। तू गोरा है तू काला है,सब भेद हमीं ने बनाया है। वर्मावासी जो सालों से,परदेशी इकपल में ठहराये हैं। निज धरा में हुए बेगाने ,पूरी बसुधा ने ठुकराया है। तानाशाही फरमान दिया,बेघर कर उन्हे भगाया है। जब अपने ही बेगानों जैसा,तिरस्कार कर बैठे हैं। नर नारी बूढ़े बच्चे,सब आशाओं से निरख रहे। कोई भी शरण नहीं देता,सब स्वारथ में बंध बैठे है। उनके दुखों को जानें अपना,उनके अश्कों को पोंछे सब। सात पाँच की लाठी भी,इकजन का बोझा बन जाती है। उनके दुखों को समझें सब,रत्ती रत्ती मिलकर बांटे । अंसुवन का करें मोल,हम सब उनमें मुस्कान भरें । हिटलर जैसा फरमान दिया,वैश्विक फटकार लगायें। रचनाकार- राजेश कुमार, कानपुर

मेल-जोल- एक कहानी

मेल-जोल रतनजी पार्क की सीमेट की बेंच पर बड़े ही अनमने भाव से बैठे हैं।सूर्योदय हुए काफी समय बीत चुका है।सूर्यदेव अपना आज का सफर काफी आगे बढ़ा चुके हैं।भोर की बेला में मुँह अंधेरे घर से निकलने वाले रतनजी नियमित रूप से प्रतिदिन हवाखोरी के लिये निकलते थे।प्रशासनिक अधिकारी के बड़े ओहदे से उन्हें सेवानिवृत्त हुए करीब 15 वर्ष बीत चुके हैं।घर वापस जाने की कोई उन्हें जल्दी महसूस नहीं हो रही थी।आखिर हो भी क्यों,कोई घर में उनका इंतजार करने वाला तो बैठा नहीं है।उनकी पत्नी सावित्री चार दशकों का दाम्पत्य सुख प्रदान कर करीब 5 वर्ष पहले इस संसार सागर से विदा हो गयीं थी।जैसा नाम वैसा ही पातिव्रत धर्म निभाती हुई अंत में बुझते दीपक सी उनसे विदा मांग ली थी।रतनजी ने भरे गले से न चाहते हुए भी उन्हें विदा कर दिया था।और वह कर भी क्या सकते थे, विदा नहीं भी करते तो क्या वह रुकने वालीं थी।सामने यमदूत अपना पाश लिये खड़े थे जो ले जाने की बेसब्री दिखा रहे थे।वे निर्मम यमदूत उनके लिये यह काम किसी कूड़गाड़ी के चालक से अधिक नहीं था जो रोज सबेरे कूड़ा लेने के लिये सीटी बजाकर आवाज देता है, और फिर अपनी बेसब्री का

त्रिआयामी(3डी)-प्रिंटेड एयरवे स्प्लिंट तीन बच्चों की जान बचायी गयी।

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त्रिआयामी(3डी)-प्रिंटेड एयरवे स्प्लिंट तीन बच्चों की जान बचायी गयी। 3 डी प्रिंटिंग तकनीक चिकित्सा के क्षेत्र में नई नहीं है।इसका उपयोग सुनने वाली मशीन से लेकर दंत प्रत्यारोपण तक सब में किया गया है।लेकिन अभी तक इस तकनीक का प्रयोग विकसित हो रहे बच्चों में लागू करना एक चुनौती थी।हालांकि,हाल में ही यह बदलाव आया है,क्योंकि शोधकर्ताओं ने तीन बच्चों जो स्वसन क्रिया में दिक्कत के कारण मौत से जूझ रहे थे उनके वायुमार्ग में 3 डी- प्रिंटेड स्प्लिंट लगा कर उनको जीवनदान दिया है।इसमें यह भी उल्लेखनीय है कि उनके शारीरिक विकास के साथ यह डिवाइस भी अपना आकार बढ़ाने में सक्षम है। मिशिगन विश्वविद्यालय के एक बाल रोग विशेषज्ञ और एक सह लेखक के रूप में कार्य करने वाले ग्लेन ग्रीन के अनुसार इस प्रकार का विशेष रूप से डिजाइन किया गया  3 डी- प्रिंटेड स्प्लिंट डिवाइस बच्चों को बीमारी में राहत देने के साथ ही उनके शारीरिक विकास के साथ इसके आकार में वृद्धि कर सकेगी।यह अध्ययन एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में साइंस ट्रांसपेर्शिकल मेडिसिन में प्रकाशित हुआ है।इसके अलावा उन्होंने कहा कि पहले बच्चे में यह प्रत्यारोपण उसके ठीक

वैश्विक परिवेश- एक कविता

वैश्विक प रिवेश भावनायें विश्वबंधुत्व की, जग से हो रही तिरोहित हैं। आतंकवाद अलगाववाद ,की पनप रही विष बेलें हैं। जग आंगन को विषबेलों ने,आगोश में लिया समाया है। आसन मानवता का डोल रहा, साम्राज्यवाद ने घेरा है। वट वृक्षों की छाँव तले,फुलबगियां नहीं पनपती हैं। सबके हाथों में बंधन बंधा हुआ,निजता स्वतंत्रता बाधित है। दिल में कुछ करने की चाह मगर,पर राहें सब अवरोधित हैं। मानुष मानुष में हैं भेद बहुत,आपस में सब आशंकित हैं। अश्कों से उठ गया भरोसा, मुस्कानें सब आतंकित हैं। ऊँचे चढ़ने की चाहत में,  हम गर्त की ओर अग्रसित हैं। मन में भरा कपट द्वेष,बेइमानी नाइंसाफी मेरी ताकत है। दुनिया में गर चाहें अमन चैन,दिल में भाईचारा की चाहत है। कथनी करनी हो भेदरहित,इक सुर में सुर सभी मिलायेंगे। आओ मिलकर सब बहन-भाई,मल मल कर मन को धोयेंगे। रचनाकार- राजेश कुमार,  कानपुर