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मई, 2018 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

प्यारी गुड़िया- एक कविता

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प्यारी गुड़िया- एक कविता मात-पिता की लाड़ली गुड़िया। है घर भर की प्यारी गुड़िया। गुड़ियों संग ही खेले गुड़िया। सबका दिल बहलाये गुड़िया। गयी घूमने माँ संग गुड़िया। बीच हाट में बिछुड़ी गुड़िया। तीन दिनों से भटके गुड़िया। भूखी प्यासी रोती गुड़िया। सबसे मदद मांगती गुड़िया। भूखी नजरों से सहमी गुड़िया। मिली राह भैया से गुड़िया। पूड़ी साग खाये फिर गुड़िया। फिर सब हाल बतायी गुड़िया। तब सही ठिकाने पहुंची गुड़िया। संग मात-पिता मुस्कायी गुड़िया। रचनाकार- राजेश कुमार, कानपुर

अकेला- एक चतुष्पदी कविता

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अकेला- एक चतुष्पदी कविता मुखिया नेता रवि भूप केसरी एक अकेला सब पर भारी। बनकर अनुचर सब चलते जाते देख रही है दुनिया सारी। कठिन राह मंजर दुष्कर हो पर कदम नहीं जो थम जायें। शातिर बैरी कुटिल इरादे पर विजय ध्वजा ये ही फहरायें। रचनाकार- राजेश कुमार , कानपुर

एक कड़वा सच- एक विचार

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एक कड़वा सच यह एक ऐसा कड़वा सच है मगर किसी के गले आसानी से नहीं उतरेगा।बुजुर्ग व्यक्ति द्वारा न्याय व्यवस्था पर करारी चोट की गयी है।आज भी दरोगाओं द्वारा ना मालूम कितने मामले असंवैधानिक रूप से थाने में ही निपटा दिये जाते हैं।फरियादी थाने से ही दफा कर दिये जाते हैं उनकी थाने में रिपोर्ट ही नहीं लिखी जाती है।यदि किसी ने इच्छा शक्ति दिखाकर मामले को आगे बढ़ाने का प्रयास किया भी तो अनगिनत मुश्किलों का सामना करना पड़ता है।अपराधियों द्वारा तरह-तरह की धमकियां दी जाती हैं।पुलिस द्वारा प्रताड़ित किया जाता है।इसीलिये शायद आजादी के 71 वर्ष बाद भी आम जनता की नजर में जज की तुलना में दरोगा का ओहदा बड़ा है।  -राजेश कुमार

एक वीर सैनिक की मनोकामना- एक कविता

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एक वीर सैनिक की मनोकामना- एक कविता

हाथों में बचपन-एक कविता

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हाथों में बचपन-एक कविता प्रभु का जब आशीष मिले कुल में लल्ला-लाली बन दस्तक दे जाये। सुनकर लल्ला-लाली की किलकारी सब कुनबा जन हरषित हो जाये। हाथों में लल्ला-लाली यूँ शोभित होते ज्यूं फूलों की कलियां मुस्काये। इन सबकी इक मुसकान की खातिर मात पिता सब बलि-बलि जाये। छायी उदासी थकी हो काया ये जो देखें मुस्काये मन निहाल हो जाये। लल्ला-लाली बिन आंगन सूना नयना अंसुवन भर छलक-छलक जाये। खुलते किस्मत के ताले आते ही इनके अनमोल खजाना सब पा जाये। हाथों में बचपन आज हंसे खेले कल के जग तारनहार यही बन जाये। रचनाकार- राजेश कुमार , कानपुर

अजब-गजब

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अजब-गजब व्हिस्की की दो बोतलों की कीमत 2.02 मिलियन डालर (करीब 13.75 करोड़ रुपये) हांगकांग में दुर्लभ 60 साल पुरानी मैकालान व्हिस्की की दो बोतलों ने पिछले विश्व नीलामी रिकॉर्ड को तोड़ दिया।नीलामी की बोली में इन बोतलों की कीमत $ 2..02 मिलियन तक पहुँची। सन् 1926 में इन 750 मिलीलीटर वाली बोतलों को डिस्टिल्ड किया गया था।इसे शेरी हॉगहेड कैस्क कम्पनी द्वारा तैयार किया था।

एक सुविचार-एक लेख

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एक सुविचार बुजुर्गों का सम्मान  "जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी" माता और मातृभूमि स्वर्ग से बढ़कर हैं।यह हमारे पड़ोसी देश नेपाल का आदर्श वाक्य भी है। "यत्र नार्यस्तु पूजयन्ते तत्र रमन्ते देवता" जहाँ नारियों की पूजा होती है वहाँ देवता निवास करते हैं। ऐसे ही अनगिनत उद्धरणों द्वारा माँ, नारियों और जन्म भूमि के महत्व को हिन्दू धर्म में दर्शाते हुये इनका महिमामंडन किया गया है। इसलाम धर्म की पवित्र पुस्तक कुरान 46:15- में भी अपने माता-पिता के प्रति दयालु रहने की शिक्षा दी गयी है।जो दर्द तुम्हारे जन्म के समय माँ ने सहन किया है उसका बयान करना नामुमकिन है। मुहम्मद हजरत अली कहते हैं,"कभी भी माँ से ऊँचे स्वर में बात नहीं करनी चाहिये क्योंकि उसी ने तुम्हें बोलना सिखाया है।" ऐसी मिश्रित सनातनी धर्मों वाले भारत देश में आज नारियों का दशा बहुत ही वीभत्स रूप धारण कर चुकी है।हम अपनी सनातनी परम्पराओं में धूल डाल रहे हैं।जब कि विदेशों में इन्हें शाश्वत रूप से अपनाया जा रहा है।इंडोनेशिया एक ऐसा ही देश है, जहाँ के स्कूलों में एक विशेष दिन बच्चों की माताओं के लिये आयोजित कि

परिणय -एक कविता

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परिणय -एक कविता परिणय कर बन जीवन साथी संग-संग इक राह चलें। ह्रदय मिलन से परिणय हो गठबंधन अटूट बन जाये। शूलभरी पथरीली राहें भी सुमन गलीचा सी बन जायें। करें संगम सुरताल रागिनी जीवन अमृतघट छलकायें। रचनाकार- राजेश कुमार, कानपुर

सूर्योदय-एक कविता

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सूर्योदय-एक कविता निशा बीत गयी भागा आलस आशा की किरणें फैलायें। भागे तम रजनीचर सोये ओस बिंदु मोती सों विखराये। प्राची में थी बस गयी लालिमा दिनकर देव नजर आये। रवि रश्मियां बरसायें सोना ओसकणों को हर ले जायें। हो गयी सुनहली तरुवर चोटी शाखों में उर्जा भर जाये। कनक राशि धरा पर फैली अंजुरिन में भरकर ले आयें। सब उदास से पथ सूने अब गुलजार हुयी राहें हो जायें। पंछी कलरव गान करें मधुकर गुन-गुन गुन करते जायें। नवदिन में नवकाज करें कुछ कर्ज धरा का चुक जाये। कल के जो काज रह गये अधूरे आज वो पूरन हो जायें। रचनाकार- राजेश कुमार , कानपुर

सीताराम-एक चतुष्पदी कविता

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सीताराम-एक चतुष्पदी कविता निश दिन सीताराम जपत हैं, नाम जपत सब कष्ट हरत हैं। यहि अंजनिसुत के इष्टदेव हैं,सब कालभूत इन्हीं सो डरत हैं। सीता जैसी पत्नी चाहत हैं, पर कोऊ नहिं यहिं राम बनत हैं। गर सियाराम धरती मा उतरत,स्वर्ग यहीं बन जात जगत है। रचनाकार- राजेश कुमार ,  कानपुर

उतरा दारू भूत-एक कविता

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उतरा दारू भूत-एक कविता सूट-बूट और टाई लगाते,       रोज सबेरे दफ्तर जाते। रोज शाम को दारू पीते,       देर रात ये घर को आते। दारू पीते हंगामा करते,       घरवालों पे रौब जमाते। रोज-रोज के हंगामों से,       सबका ही वो चैन गंवाते। बीबी रणचंडी हो इकदिन,       बाबूजी की खबर जो लेती। आगे आगे बाबूजी भागे,       झाड़ू लेकर बीबी दौड़ाती। हुयी पिटायी झाड़ू से जब,       दारू भूत उतर फिर भागा। कान पकड़ माफी फिर मांगे,       तौबा दारू से कर डाले। रचनाकार- राजेश कुमार ,  कानपुर

समर्पण- एक कविता

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समर्पण- एक कविता   देश हित में जो करें समर्पण वो नसलें तैयार करें। जो खाकर देश प्रेम बढ़ जाये वो फसलें तैयार करें। लहू देश का जो पीते हैं उन गद्दारों पर वार करें। देश धन से भरें तिजोरियां उन जोंकों पर मार करें। रचनाकार- राजेश कुमार ,  कानपुर

तितली- एक कविता

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तितली- एक कविता रंग-बिरंगी तितलियाँ हैं फूल-फूल पर ये मंड़रातीं। इठलाते बलखाते उड़ें सबको ही ये प्यारी लगतीं। तितली जैसी बालायें हैं रंग-रूप से सब ललचातीं। इच्छायें तितली हैं मन की प्यास नहीं बुझ पाती। इत-उत डोलें भागें यह मृगमरीचिका सी भरमाती। चाह रखें धनवान बनें निशि-दिन का चैन गंवाती। सुंदर मुखड़े की चाहत में अपनी सूरत ये भुलवाती। आशाओं की भरी पिटारी क्या-क्या ये नहिं करवाती। सन्मुख ज्ञानीजनों के तितलियाँ बेदम हो रह जाती। रचनाकार- राजेश कुमार ,  कानपुर