परिणय -एक कविता


परिणय -एक कविता
परिणय कर बन जीवन साथी संग-संग इक राह चलें।
ह्रदय मिलन से परिणय हो गठबंधन अटूट बन जाये।
शूलभरी पथरीली राहें भी सुमन गलीचा सी बन जायें।
करें संगम सुरताल रागिनी जीवन अमृतघट छलकायें।
रचनाकार- राजेश कुमार, कानपुर

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