संदेश

फ़रवरी, 2018 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

फागुन - एक कविता

चित्र
फागुन - एक कविता गयी सरदियाँ आयो फागुन मौसम में गरमाहट दिलवाये। रजाई जैकेट कम्बल मफलर से फागुन फुरसत दिलवाये। सर्दी गर्मी मौसम का संगम फगुनाहट की मस्ती छाये। पतझड़ गया ऋतु रंग बसंती वृक्षों में नवपल्लव छाये। रचनाकार- राजेश कुमार ,  कानपुर

महानगर - एक कविता

चित्र
महानगर - एक कविता मैं हूँ इक महानगर, पांव पखारे सागर मेरे। अंतर्तम मेरा है जलधि अथाह जन लहराये। चमक दमक रंगीन भरी, चमचमायी हैं राहें। महल-दुमहले हैं ऊँचे,ये गगन चूमने हैं आये। आकांक्षाओं से सराबोर, जन-जन की इच्छायें। लिपे-पुते मेरे आनन में, ढक डाली कुरूपता है। यानों मोटर रेलों का, चहुँ ओर शोर मचता है।   चमचम निज अंतस में, हैं दफन अनंत कराहें। खेत खलिहान नदी नाले, पोखर झील सरोवर। झोपड़ियां पर्वत पहाड़, बाग बगीचे सब जंगल। आहें उजड़ें जन जन की,सब मैंने हैं दफना डाले। अंतर्तम के कोलाहल ने,लूटा है मेरा अमन चैन। रचनाकार- राजेश कुमार ,  कानपुर

एक कविता

चित्र
एक मुक्तक                                                                    

महा शिवरात्रि पर्व- एक कविता

चित्र
महा शिवरात्रि पर्व- एक कविता शिव पियें हलाहल विषधर नीलकण्ठ हैं कहलाये। मस्तक पर धरे गंगा चंदा गौरीशंकर वो कहलाये। सत्यम् शिवम् सुंदरम् मंत्र सभी धारण कर जायें। शिवरात्रि महापर्व पर शिवजी का पूजन कर आयें। भांग धतूरा दुग्ध बेल पत्र से उनका अभिषेक करें। करें ध्यान शिव का निज दुर्गुण अवगुण तज आयें। सकल जन होंयें खुशहाल और बदरा अमृत बरसायें। जगत की खातिर अमन चैन सुख शिवजी से मांगें। रचनाकार- राजेश कुमार ,  कानपुर

चालाक-एक कविता

चित्र
चालाक-एक कविता लेन देन सब करते यहाँ है यही जगत व्यौहार। है पाक साफ तब तलक ही बने ना ये व्यौपार। चतुर सयानापन जो भी करे कहते उसे सियार। स्वारथ चालाकी रखें परे बने न खुद होशियार। रचनाकार- राजेश कुमार ,  कानपुर

दिव्यांग जन- एक कविता

चित्र
दिव्यांग जन- एक कविता बीती निशा उदय भये दिनकर सुरमई सुबह गुलजार हुयी। दिव्यांग चला मिलने दिनकर से आशीषों की बरसात हुयी। तन ही मेरा दिव्यांग हुआ फिर भी मन ऊँची उड़ान भरे। जो हैं दुर्बल मन सबल तनधारी सब वसुघा के  भार बने। दिव्यांग सभी बलवान बनें गर समाज का संबल पा जायें। मन में दिव्यांगता छा जाये फिर सुंदर तन दुर्बल हो जाये। सात-पाँच की लाठी भी इक जन का बोझा हो जाती है। बोझ अगर सब मिल बाँट चले राहे आसां बन जाती है। इक पैर बिना अरूणिमा एवरेस्ट भी फतह कर जाती है। हौसलों की ऊँची उड़ानों से दिव्यांगता भी हार जाती है। रचनाकार- राजेश कुमार ,  कानपुर

मोह- एक कविता

चित्र
मोह- एक कविता नश्वर यहि संसार है सब कोऊ जानै आय। माया मोह के फंद हैं कोई बच नहिं पाय। मौत सामने है खड़ी मोह छोड़ि नहिं जात। हिरनी तनया संग में बघवा वहि धरि खात। रचनाकार- राजेश कुमार, कानपुर