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नवंबर, 2017 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

एक महाशहर- एक कविता

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एक महाशहर मैं हूँ एक शहर, एक महा शहर। मैं हूँ एक महा दानव, मेरा मुँह सुरसा जैसा। मेरा पेट कुम्भकर्ण का, एक ब्लैक होल जिसमें सब कुछ समाये, फिर भी रहे खाली का खाली। मेरे पेट में समाये, ना जाने कितने शहर। कितने गाँव,कितनी बस्तियाँ। खेत-खलिहान, बाग-बगीचे फुलवारी। नदी नाले झरने, झीलें पोखर तालाब। मेरे मुँह में समाते, भंडार अनाज सब्जियों के। फल-फूल, दूध दही मक्खन। मैं छीन लेता, मासूमों का निवाला। उनकी हँसी-मुस्कान, उनका बचपन। उनके हक का सारा सामान, उनके माँ-बाप, उनकी सारी हसरतें। मेरे मुँह में जाते, गाँव के नर-नारी। मैं छीनता जवानी, कर देता सबको बूढ़ा। मेरे पैर महादानव जैसे,बड़ी-बड़ी चिमनियाँ। मोबाइल टावर, बिजली के खम्भे, गगनचुम्बी इमारतें,माइक्रोवेव टावर । बदले में मैं मुँह से उगलता, धूल-धुवाँ, प्रदूषित हवा। वातावरण में जहर घोलता, नदियाँ बनायीं गन्दा नाला। उन्नति प्रगति का क्रूर परिणाम, मेरी साँसों में अनन्त शक्ति। सबको मैं जबरन खींच लेता, लपेट लेता अपना यमपाश। चूस लेता पूरा रक्त, और निकाल देता सबका दम। रचनाकार- राजेश कुमार,  कानपुर

शरद ऋतु- एक कविता

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शरद ऋतु बरखा गयी दीवाली बीती, गरमी उमस भरे दिन बीते। दस्तक दे दी शरद ऋतु ने,कूलर पंखे सब शांत हो गये। आसमान में छाये कुहासा,दिनकर भी अब शांत हो गये। जैकेट कोट शाल सब डाले, गुलूबंद कानों में हैं लिपटाये। गरम लिहाफ रजाई ओढ़ें, दंतुलियां सबकी बज-बज जायें। बनाते रोज लिहाफ रजाई,पर अपनी खातिर नहीं मयस्सर। अमीर गरीब की बनी है खाई,कहाँ से लायें अपनी रजाई। दो जून पड़े रोटी के लाले, खुले आसमान में रातें काटें। करते निश-वासर मजदूरी, पर मँहगाई में सब जर जाये। लकड़ी सरकारी अलाव की,घर धनपतियों के ही दहकाये। कुछ गरमी मजलूमों में बांटें,उनकी रातें भी कट जायें। रचनाकार- राजेश कुमार,  कानपुर

उपहास - एक कविता

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कविता लोक चतुष्पदी समारोह- 235 संचालक- सुश्री भारती जैन 'दिव्यांशी' जी अध्यक्ष- श्री संगीत पांडेय जी एवं मंच के सभी मनीषियों की प्रतिष्ठा में- उपहास वैरी का उपहास करो मत, वो तो करना संघर्ष सिखाये। जब भी कोई चूक होये तो,इस पर वैरी नजर है रखता। सखा दिखाये सही राह, अरु वैरी भय सब सीधे चलते। बने कृतज्ञ वैरी के निश-वासर, वो तो सद्मार्ग दिखाये। रचनाकार- राजेश कुमार, कानपुर

मातृ-पितृ वंदन-एक कविता

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मातृ-पितृ वंदन मात-पिता गुरु स्वामी मेरे, मैंने इनसे सब कुछ पाया। छत्र-छाया इनकी मुझ पर, वरद हस्त सिर पर मेरे है। करे अवज्ञा जो भी इनकी, उनकी दुनिया में तम छाये। आयें जब भी मुश्किल घड़ियां,तारनहार तभी बन जाते। प्रभु से पहले याद आयें ये, मेरा सारा इनको अर्पण है। आदर श्रद्धा है धर्म हमारा,सकल काज पूरन होते हैं। दुख मुश्किल की घड़ियों में,मेरी ये फरियादें सुनते हैं। धुरी बने मेरी दुनिया के, ये कायनात के मालिक हैं। परमेश्वर को हर क्षण भजते,साक्षात दर्शन पाते हैं। मेरी राहें करें प्रकाशित,भले बुरे का ज्ञान कराते हैं। साक्षात्कार प्रभु से हैं करते,जो इनको हरदम भजते हैं। नित आशीष मुझे देते ये,जग के जीवित परमेश्वर हैं। जब मैं इनके चरण पखारूँ,सुरसरि आशीषों की बहती है। रचनाकार- राजेश कुमार,  कानपुर

खुशबू का व्यापार-एक कविता

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खुशबू का व्यापार खुशबू का व्यापार करें, और पौध लगायें फूल खिलायें। खिलें फूल फिर आयें बहारें, सकल जगत रंगीन बनायें। तितली भौंरे पंछी झूमें, मधुर मधुर मधु फिर उपजायें। मधुर सुरभि महकाये जग को, दूर फलक में छा जाये। गेंदा गुलाब फूल चम्पा के, निज मुस्काने सब फैलायें। आती जाती रहें बहारें, षड्ऋतु चक्र यों ही चलता जाये। महके चमन फूल मुस्कायें, कायनात में खुशियाँ छायें। फुलबगिया सी हरी भरी धरा हो, नैनजोत भी बढ़ जाये। खुद महकें अरु जग भी महके, शुभसंदेशा सबमें पहुँचायें। उतार लायें इंद्रधनुष धरती में सतरंगी दुनिया बन जाये। हँसी-खुशी से जीवन काटें, अपना जीवन सफल बनायें। रचनाकार- राजेश कुमार,  कानपुर

चिकित्सा जगत की ऊँची छँलांग- एक उपलब्धि

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दुनि                 दुनिया में पहली बार हुआ खोपड़ी का ट्रांसप्लांट अमेरिका के डॉक्टरों ने ट्रांसप्लांट सर्जरी के क्षेत्र में एक बड़ी उपलब्धि हासिल की है। उन्होंने दुनिया में पहली बार किसी खोपड़ी और सिर की खाल के ट्रांसप्लांट को अंजाम दिया। ट्रांसप्लांट करवाने वाले 55 साल के व्यक्ति को कैंसर था , जिसके इलाज के दौरान सिर में एक गहरा जख्म हो गया था।एमडी एंडरसन कैंसर सेंटर और ह्यूस्टन मेथोडिस्ट हॉस्पिटल ने गुरुवार को ऐलान किया कि यह ऑपरेशन 22 मई को 15 घंटे तक चला और सफल रहा। ऑस्टिन के सॉफ्टवेयर डिवेलपर जेम्स बॉयसन ने इस ट्रांसप्लांट के साथ - साथ एक किडनी और पैनक्रिया का भी ट्रांसप्लांट करवाया। यह सर्जरी एक दिन तक चली।प्लास्टिक सर्जरी वाली टीम का नेतृत्व करने वाले डॉक्टर माइकल क्लेबक ने बताया कि यह नाड़ियों से जुड़ा बहुत जटिल ऑपरेशन था। उन्होंने कहा कि हमने खोपड़ी की हड्डी को बॉयसन के सिर की बाल उगाने वाली त्वचा में लगाया। वो भी इस तरह

दोस्ती की मिशाल

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दोस्ती की मिशाल हर साल 5,000 मील तैरकर अपने जान बचाने वाले व्यक्ति से मिलने आती है यह पेंगुइन दक्षिणी अमेरिका से हर साल एक पेंगुइन अपने 'जीवनरक्षक' से मिलने के लिए आती है। आपको जानकर ताज्जुब होगा की यह मैगेलैनिक पेंगुइन 5 हजार मील तैरकर हर साल उस व्यक्ति से मिलने ब्राजील आती है जिसने इसके प्राण बचाए। 'मेट्रो' की खबर के मुताबिक, यह पेंगुइन हर साल जोआओ परेरा डी सूजा से मिलने के लिए आती है। पेररा की उम्र 71 साल की है और वह मछुआरे का काम करते हैं।जोआओ परेरा ब्राजील के रियो डे जेन ेरियो के पीछे बसे एक गांव में रहते हैं। पेरारा ने साल 2011 में इस पेंगुइन की जान बचाई। जब पेरारा को यह पेंगुइन मिली थी उस वक्त ये तेल में सनी हुई एक पहाड़ी के नीचे लेटी हुई थी और मरने के कगार पर पहुंच गई थी। परेरा ने पेंगुइन के प्राण बचाए और उसे कई दिनों तक भोजन के रूम में मछलियां खिलाई। इसके बाद इसका नाम डिण्डिम रखा गया। इसके एक हफ्ते बाद परेरा ने पेंगुइन को समुद्र में छोड़ने का प्रयास किया लेकिन वो उसका साथ छोड़ने को तैयार नहीं हुई। परेरा का कहना है कि पेंगुइन उसके साथ 11 महीने तक रही और उसके बा

कविता- एक कविता

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कविता     कविता शब्दों की सुमनहार दिल के आर पार हो जाये। कुंठित दूषित दुखित दिलों को भी ये हरषित कर जाये। कविता में संगीत पिरो कर वाणी का तूणीर बनायें। शरसंधान करे सुर लहरी रोम रोम बिंध कर रह जाये। रचनाकार- राजेश कुमार,  कानपुर

गुलशन की अभिलाषा- एक कविता

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गुलशन की अभिलाषा घोर प्रदूषण छाया जग में,    मुरझाया है गुलशन उपवन। सिसक रही हैं सारी कलियाँ,   हैं पंछी भौंरे करते मातम। फूलों की मुस्कान छिन गयी,  रूठ गयी हैं सभी बहारें। आर्तनाद कर रही वसुन्धरा,   ज्वालायें बरसा रहा गगन। रौनक फुलवारी की फूलों से,   कलियों की मुस्कान फूल हैं। महक महक महकी फुलवारी,   भ्रमरों का गुंजार हुआ। सार संभाल करो कलियों की,  गर खुशबू की चाहत है। मासूम सभी कलियों जैसे,     मुस्कान भरो कल की खातिर। उर्जा खुशबू संचित कर लें,    कड़वाहटों से नाता तोड़ें। पुकार रही कलियाँ फूलों से,   तुम हो आज तो हम कल हैं। चमन सराबोर हो खुशबू से,   फिर कल को हम महकायेंगे। सब सुनें पुकारें कलियों की,   गर सदाबहारों की चाहत है। गर इनसे मुँह फेरा तुमने,     फिर रूठ जायेंगी सभी बहारें। कलियां फूल औ चमन बहारें, आबाद रहेंगी सदियों तक.. आबाद रहेंगी सदियों तक.............. रचनाकार- राजेश कुमार,  कानपुर