गुलशन की अभिलाषा- एक कविता
गुलशन की अभिलाषा
घोर प्रदूषण छाया जग में, मुरझाया है गुलशन उपवन।
सिसक रही हैं सारी कलियाँ, हैं पंछी भौंरे करते मातम।
फूलों की मुस्कान छिन गयी, रूठ गयी हैं सभी बहारें।
आर्तनाद कर रही वसुन्धरा, ज्वालायें बरसा रहा गगन।
रौनक फुलवारी की फूलों से, कलियों की मुस्कान फूल हैं।
महक महक महकी फुलवारी, भ्रमरों का गुंजार हुआ।
सार संभाल करो कलियों की, गर खुशबू की चाहत है।
मासूम सभी कलियों जैसे, मुस्कान भरो कल की खातिर।
उर्जा खुशबू संचित कर लें, कड़वाहटों से नाता तोड़ें।
पुकार रही कलियाँ फूलों से, तुम हो आज तो हम कल हैं।
चमन सराबोर हो खुशबू से, फिर कल को हम महकायेंगे।
सब सुनें पुकारें कलियों की, गर सदाबहारों की चाहत है।
गर इनसे मुँह फेरा तुमने, फिर रूठ जायेंगी सभी बहारें।
कलियां फूल औ चमन बहारें, आबाद रहेंगी सदियों तक.. आबाद रहेंगी सदियों तक..............
रचनाकार- राजेश कुमार, कानपुर
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