एक कड़वा सच- एक विचार

एक कड़वा सच
यह एक ऐसा कड़वा सच है मगर किसी के गले आसानी से नहीं उतरेगा।बुजुर्ग व्यक्ति द्वारा न्याय व्यवस्था पर करारी चोट की गयी है।आज भी दरोगाओं द्वारा ना मालूम कितने मामले असंवैधानिक रूप से थाने में ही निपटा दिये जाते हैं।फरियादी थाने से ही दफा कर दिये जाते हैं उनकी थाने में रिपोर्ट ही नहीं लिखी जाती है।यदि किसी ने इच्छा शक्ति दिखाकर मामले को आगे बढ़ाने का प्रयास किया भी तो अनगिनत मुश्किलों का सामना करना पड़ता है।अपराधियों द्वारा तरह-तरह की धमकियां दी जाती हैं।पुलिस द्वारा प्रताड़ित किया जाता है।इसीलिये शायद आजादी के 71 वर्ष बाद भी आम जनता की नजर में जज की तुलना में दरोगा का ओहदा बड़ा है। 
-राजेश कुमार

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

भ्रमजाल का मकड़जाल- एक कविता

बिजली के खंभे पर पीपल का पेड़ - एक कविता