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दिसंबर, 2017 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

रंगशाला -एक कविता

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रंगशाला -एक कविता जगत हमारी इक रंगशाला सब नर नारी हैं कलाकार। जो भेद-भेद के नाच नचाये सबका इक वो ही सूत्रधार। ता-ता थैया कर नाच नचाये पर भेद कोई जान ना पाये। सब अदा दिखायें विदा हैं लेते नाटक आगे बढ़ता जाये। रचनाकार- राजेश कुमार, कानपुर

ममतामयी प्रकृति- एक कविता

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ममतामयी प्रकृति बाग बगीचे जंगल काटे कंकरीट के जंगल छाये। दड़बे जैसे नीड़ सजे साँसे घुट-घुट कर रह जायें। घुटन भरी हैं साँसें सबकी घुटन भरी हैं सब राहें। घुटन भरा है जीवन औ जहरीली हो गयी हवायें। प्रगति होड़ में ऐसे डूबे भया प्रदूषण है चहुँ ओर। बहें बयारें प्रातकाल की रवि किरणें सोना विखराये। ओसकणों के मोती बिखरे कुछ तो संचित कर लायें। जीवन की आपा धापी कुछ पल सुकूं भरे मिल जायें। जीवन जीने की खातिर कुछ उर्जा संचित कर लायें। खुली हवा में जीना सीखें तनमन पुलकित हो जाये। जननी प्रकृति का आँचल थामें जीवन सुखी बनायें। कुछ ऐसी विधा निकालें वसुधा हरी भरी हो जाये। रचनाकार- राजेश कुमार, कानपुर

न्याय- एक कविता

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न्याय   अपने वतन में छायी भुखमरी पर भरें तिजोरी विदेशों की। वतन में छुपी हुयी जोंकें पहचाने उनको नाश समूल करो। नौकरशाह खद्दरधारी बड़ी जोंकें हैं उन्हें नेस्तनाबूद करो। अन्यायी की कमर तोड़ कर न्याय ध्वजा को फहरा डालो। रचनाकार- राजेश कुमार,  कानपुर

शरद् ऋतु वर्णन-एक कविता

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शरद् ऋतु वर्णन शरद ऋतु है य़ौवन में छाया प्रकोप सर्दी का चहुँ ओर। पशु पक्षी अरु जीव जंतु सब निज नीड़ों हैं भाग छिपे। वसुधा से अवकाश मांग दिनकर आनन हैं छिपा लिये। हैं बदहाल सगर नर नारी तन मन में है छायी बेहाली। अमीर दौलत की शमशीर भांजते अपनी करें सुहानी रातें। ओढ़ मुफलिसी का आँचल निरधन भी काटें सरदीली रातें। कोहरे से लिपटा है आसमान हो रही हैं बरफीली बरसातें। माँ बेटी इक चादर में लिपटे सरदी से है राहत की चाहत। मोमिया अखबार कचड़ा समेट अर्पण अग्नि देव को करते। शायद इससे कुछ ताप मिले तन में कुछ गरमी आ जाये। धूल-धुवाँ की कछु फिकर नहीं पहले तो अपनी जान बचायें। अमीर जूंठन कुछ निर्धनों को बांट उनमें भी कुछ ताप भरायें। रचनाकार- राजेश कुमार, कानपुर

तुलसी- एक कविता

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तुलसी    विरवा तुलसी का आँगन सजे करें देवता वास। नित जल तुलसी को अर्पण करें पूरी होये आस। बेल पत्र तुलसी सुमन शिव जी के शीस चढ़ाय। नित तुलसी दल सेवन करे तन निर्मल हो जाय। रचनाकार- राजेश कुमार,  कानपुर

स्वच्छता अभियान का सच -एक कविता

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स्वच्छता अभियान का  सच  बढ़ता जन सैलाबी दानव सब संशाधन लीले जाये। मंहगाई की मार खायें जरुरते सुरसा सा मुँह बाये। फटे चीथड़ों से बनी झोपड़ी में है निजधाम बनाये। बसर हेतु घर नहीं है फिर शौचालय कहाँ से लाये। नर नारी सब के तन मन में तो लाज शर्म विराजे। पर करें शौच खुले में लाज शर्म सब भूल ही जाये। खुली जगह रेलपथ नाली नैन झुका शौच कर आये। ऊंच-नीच की बड़ी दीवारें उदर भरण भारी हो जाये। सरकारी सफाई अभियान मैला को धूल से ढकवाये। नेता अफसर खायें मलाई कागजात में करें सफाई। दूषित मन से काम करें जब कैसे पूरी होये सफाई। रचनाकार- राजेश कुमार,  कानपुर

रोजी-रोटी - एक कविता

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रोजी-रोटी     रोजी रोटी की भाग दौड़ में सब रिश्तों का होता मरदन है। रोजी रिश्तों में जो रखे संतुलन उसका होता अभिनन्दन है। मुफलिस लाचार गरीबों में रोटी की खातिर होता क्रन्दन है। चुपड़ी खातिर गर रूखी रोटी छोड़ी तो बिगड़े सभी संतुलन है। रचनाकार- राजेश कुमार,  कानपुर

वीरों के वीर महाराणा प्रताप-एक कविता

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वीरों के वीर महाराणा प्रताप चेतक की राणा प्रताप ने करी सवारी उनकी शान निराली थी। हल्दी घाटी के समर में वीरों से मुगलों ने मुँह की खायी थी। आन बान अरु जननी की खातिर राणाजी ने भाला थामा था। जिधर करे चेतक अपना रुख काई सा अरि दल फट जाता था। जब बख्तरबंद बाँध कर निकले राणा मुगलों को मजा चखाया था। अरि शोणित नदियाँ बह निकली जब राजपूतों ने कहर बरपाया था। त्राहिमाम कर रोये बैरी दल जब भी चेतक बन जाता मतवाला था। राह परवतों की हो चाहे चेतक क्षण भर में उनकी धूरि बनाता था। देश की खातिर जान गँवाने को राणा ने कसमें खायीं थी। जंगल मरुभूमि में राणा भटके रोटियाँ घासों की खायीं थी। उनके वंशज करें लोहारी अब भी राणा के प्रण को निभाते हैं। देश की खातिर खायी ठोकरें उन तकलीफों का एहसास कराते हैं। रचनाकार- राजेश कुमार,  कानपुर