वीरों के वीर महाराणा प्रताप-एक कविता
वीरों के वीर महाराणा प्रताप
चेतक की राणा प्रताप ने करी
सवारी उनकी शान निराली थी।
हल्दी घाटी के समर में
वीरों से मुगलों ने मुँह की खायी थी।
आन बान अरु जननी की खातिर
राणाजी ने भाला थामा था।
जिधर करे चेतक अपना रुख काई
सा अरि दल फट जाता था।
जब बख्तरबंद बाँध कर निकले
राणा मुगलों को मजा चखाया था।
अरि शोणित नदियाँ बह निकली जब
राजपूतों ने कहर बरपाया था।
त्राहिमाम कर रोये बैरी दल जब
भी चेतक बन जाता मतवाला था।
राह परवतों की हो चाहे चेतक
क्षण भर में उनकी धूरि बनाता था।
देश की खातिर जान गँवाने को
राणा ने कसमें खायीं थी।
जंगल मरुभूमि में राणा भटके
रोटियाँ घासों की खायीं थी।
उनके वंशज करें लोहारी अब
भी राणा के प्रण को निभाते हैं।
देश की खातिर खायी ठोकरें उन
तकलीफों का एहसास कराते हैं।
रचनाकार- राजेश कुमार, कानपुर
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