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एक सोच

एक सोच- प्रस्तुत इस वीडियो को देखकर निम्नवत भावनायें जाग्रत हुयीं- सीमाओं के प्रहरी बने दोनों देशों के सैनिक, जो शायद अपनी-अपनी सीमाओं में रहकर एक दूसरे का चेहरा देखते-देखते सम्भवतः एक दूसरे के चिर परिचित मित्र भी बन चुके हों।उन्होंने त्यौहार के मौके पर एक दूसरे को भेंट व शब्दों की बधाइयों व आशीर्वाद की बौछारों से एक दूसरे के तन मन को सराबोर कर रख दिया।सम्भवतः यह बहुत पुरानी परम्परा भी है।आखिर क्यों न हो, क्योंकि दोनों ही देश एक दूसरे के ह्रदय से जन्म लिये जुड़वाँ ही हैं।अब इस मौके पर आवश्यकता है कि दोनों देशों के आकाओं को एक साथ मिल बैठ कर ह्रदय से अपने-अपने स्वार्थों को परे रख कर इसे जमीनी तौर पर सच साबित कर के दिखायें।सीमाओं की रक्षा के नाम पर होने वाली बेहिसाब देशी व विदेशी नकदी जो खर्च की जा रही है, जिससे वह दोनों ही देशों के सार्थक सृजन में काम आ सके। कृपया समर्थन में ज्यादा से ज्यादा लाइक व शेयर करें।

भिक्षा- एक कविता

भिक्षा- एक कविता लेन-देन है चलन जगत का कोई लेवे कोई देवे। सांसो की आवा-जाही भी लेन-देन से ही है होवे। सकल भिखारी दाता हो बैठे दानी बने भिखारी हैं। करें दम्भ दानी होने का कर्मों से बने भिखारी हैं। रचनाकार- राजेश कुमार, कानपुर

वाह वाह क्या बात है

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वाह वाह क्या बात है बुजुर्ग महिला को 'गंदी गालियां' देने का आरोपी तोता हुआ थाने में तलब, पुलिस के सामने साधी चुप्पी एक अजीबोगरीब मामले में 80 साल की एक बुजुर्ग महिला को 'गंदी गालियां' देने के आरोपी तोते को समन भेजकर पुलिस थाने तलब किया गया।महाराष्ट्र के चंद्रपुर जिला के राजुरा में हुए इस अजीबोगरीब वाकये में इस पक्षी के मालिक के खिलाफ थाने में शिकायत दर्ज कराई गई थी कि उसी ने कथित रूप से पिंजरे में कैद इस जीव को ऐसा करना सिखाया था।पुलिस की सोचने की सीमा उस वक्त जवाब दे गई, जब   जानाबाई सखारकर ने अपने सौतेले बेटे सुरेश पर आरोप लगाया कि उसने अपने तोते 'हरियल' को गाली देना सिखाया है। पुलिस को उन्होंने बताया कि जब भी वह उसके घर के पास से गुजरती है तो तोता उन्हें गाली देता है।गुस्साई महिला के आरोप की पुष्टि के लिए पुलिस ने जानाबाई, उसके सौतेले बेटे सुरेश और तोता हरियल सहित मामले में शामिल तीनों को पुलिस थाने बुलाया।बहरहाल, तोता खाकी वर्दीधारी पुलिस को देख सकपका गया। पक्षी जानाबाई को गालियां देता है या नहीं यह देखने के लिए जैसे ही उसका पिंजरा महिला के पास लाया गया,

स्वच्छता अभियान- एक कविता

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स्वच्छता अभियान चश्मा दरश कराता जग की गर नजर हमारी कम हो जाये। रकम रकम के काले नीले ये सब बाजारों में मिल जायें। दुनिया चाहे जैसी भी हो पर सब ये अपने रंग में रंग डालें। जग में तन में भरी कालिमा प्रण सब निरमल का कर डालें। बाल वृद्ध सब मिल करें सफाई जग आँगन की धूल बुहारें। सात पाँच की लाठी भी मिल कर इक जन का बोझा बन जाये। पर गर वहन करें सब मिल कर आसान सभी राहें हो जायें।   ऊँच नीच औ जात पात की मुंडेरों से हम छुटकारा पा जायें। सभी पीढ़ियां मिल समाज की मल मल कर निरमल हो जायें। मल मल कर मल को सब धोयें जग तन तम निरमल हो जाये। श्वेत पदम सा हो जग आँगन धूल धुवाँ सब दूर भगायें। जन-जन जग के इक मंच तले हों जन मानस परिवार बनायें। हो तन मन में गर भरी गंदगी सब तज जीवन सफल बनायें। रचनाकार- राजेश कुमार, कानपुर

दीपों का त्यौहार दीवाली- एक कविता

दीपों का त्यौहार दीवाली दीप जलायें खुशी मनायें फैले तम को दूर भगायें। इक दीपक अन्तर्तम में बारें मन-तम को हर डालें। आशाओं की ज्योति जलायें निराशायें दूर भगायें। हर कोने में दीप जलायें जीवन सबका सुखी बनायें। काली निशा अमावस आयी जग में तम भर आया। दीपावली में बहु दीप जलायें बुझे हुए दीपों को बारें। अपनी खुशियाँ सबसे बांटें मजलूमों से हाथ मिलायें। गर अंधकार को है हरना द्वंद युद्ध उससे है करना। इक लघु दीप भी आशा का तम पर भी भारी पड़ जाये। अनार पटाखे फुलझड़ियों को टाटा बाय बाय कर डालें। इनके बदले में कुछ खुशियां मजलूमों की झोली में डालें। करें प्रदूषण मुक्त जगत को प्राण वायु से हाथ मिलायें। बारें पंचमुखी माटी का दीपक हरीप्रिया घर में बस जायें। दीप से दीप जलाते जायें कलुषित मन को साफ बनायें। रचनाकार- राजेश कुमार,  कानपुर

पटाखे- दीपक -एक चतुष्पदी कविता

पटाखे- दीपक  मासूम पटाखों का सृजन करें असमय कालकवलित होते। धमक चमक से फटे पटाखे मासूमों की आहें लील गयीं। फटे पटाखे आसमान में हवा फिजाओं में जहर घोल देते। लड़ी झालरें बनी विदेशी माटी के देशी दीपक लील गयीं। रचनाकार- राजेश कुमार, कानपुर

करोड़ों का वारिस है यह बन्दर

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करोड़ों का वारिस है यह बन्दर रायबरेलीःउत्तर प्रदेश के रायबरेली जिले में एक अमीर दम्पति अपनी जमीन जायदाद पालतू बन्दर के नाम करने का इरादा कर रहे हैं।दम्पति ने बन्दर के बच्चे को उस समय गोद लिया था , जब दस साल पहले उसकी मां की मौत हो गयी थी।बृजेश ने कहा कि अब हमने अपना मकान , 200वर्ग गज भूखंड और बैंक में जमा रकम ‘ चुनमुन ’ के नाम करने का फैसला किया है क्योंकि हम चुनमुन को अपने बेटे की तरह मानते हैं।बृजेश श्रीवास्तव व उनकी पत्नी सविस्ता की कोई औलाद नहीं है लेकिन वह अपने पालतू बन्दर को बेटे की तरह मानते हैं।उन्होंने एक ट्रस्ट बनाया है ताकि सुनिश्चित हो सके कि उनकी मौत के बाद भी चुनमुन की देखरेख होती रहे।बन्दर की आयु सामान्य तौर पर 35से 40साल होती है।उन्होंने कहा कि ‘ लोग कह सकते हैं कि हम पागल हैं लेकिन उन्हें ऐसा कहने दीजिये ’ ।बृजेश के मुताबिक चुनमुन उनके लिये भाग्यषाली है।जब 2004 में उन्होंने उसे गोद लिया तो वह काफी गरीब थे अब वह सम्पन्न हैं।उनके पास घर है , भूमि है और बैंक बचत भी है।सबिस्ता (45) पेशे से वकील है जबकि उनक पति बृजेश(48) का अपना कारोबार है जो चुनमुन के नाम से चलता है।

अखबार- एक कविता

अखबार भोर सबेरे सूरज उगता सबको इंतजार मेरा है रहता। नव नित रोज कलेवर सजता दैनिक मैं हूँ कहलाता। नर-नारी और बूढ़े-बच्चों हूँ मैं सबका मैं राज दुलारा। कीमत चुटकी भर ही लेकर अंजुरियों भर खबर लुटाता। इक दिन का है मेरा जीवन उसको भी मैं जम कर जीता। कड़वी खट्टी-मीठी खबरें नीलकंठ बनकर मैं रखता। इक दिन का बन बादशाह फिर मैं हूँ रद्दी बन जाता। दुनिया भर का लेखा-जोखा नित नित संचित कर रखता। समता का मैं धुर रक्षक हूँ राजा रंक में भेद न करता। चाहे लघु जीवन मिल पाये पर उसको भी सफल बनाना। रचनाकार- राजेश कुमार,  कानपुर