भिक्षा- एक कविता

भिक्षा- एक कविता
लेन-देन है चलन जगत का कोई लेवे कोई देवे।
सांसो की आवा-जाही भी लेन-देन से ही है होवे।
सकल भिखारी दाता हो बैठे दानी बने भिखारी हैं।
करें दम्भ दानी होने का कर्मों से बने भिखारी हैं।
रचनाकार- राजेश कुमार, कानपुर

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