दीपों का त्यौहार दीवाली- एक कविता
दीपों का त्यौहार दीवाली
दीप जलायें खुशी मनायें
फैले तम को दूर भगायें।
इक दीपक अन्तर्तम में बारें
मन-तम को हर डालें।
आशाओं की ज्योति जलायें
निराशायें दूर भगायें।
हर कोने में दीप जलायें जीवन
सबका सुखी बनायें।
काली निशा अमावस आयी जग में
तम भर आया।
दीपावली में बहु दीप जलायें
बुझे हुए दीपों को बारें।
अपनी खुशियाँ सबसे बांटें
मजलूमों से हाथ मिलायें।
गर अंधकार को है हरना द्वंद
युद्ध उससे है करना।
इक लघु दीप भी आशा का तम पर
भी भारी पड़ जाये।
अनार पटाखे फुलझड़ियों को
टाटा बाय बाय कर डालें।
इनके बदले में कुछ खुशियां
मजलूमों की झोली में डालें।
करें प्रदूषण मुक्त जगत को
प्राण वायु से हाथ मिलायें।
बारें पंचमुखी माटी का दीपक
हरीप्रिया घर में बस जायें।
दीप से दीप जलाते जायें
कलुषित मन को साफ बनायें।
रचनाकार- राजेश कुमार, कानपुर
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