रंगशाला -एक कविता


रंगशाला -एक कविता
जगत हमारी इक रंगशाला सब नर नारी हैं कलाकार।
जो भेद-भेद के नाच नचाये सबका इक वो ही सूत्रधार।
ता-ता थैया कर नाच नचाये पर भेद कोई जान ना पाये।
सब अदा दिखायें विदा हैं लेते नाटक आगे बढ़ता जाये।
रचनाकार- राजेश कुमार, कानपुर



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