शरद् ऋतु वर्णन-एक कविता

शरद् ऋतु वर्णन
शरद ऋतु है य़ौवन में छाया प्रकोप सर्दी का चहुँ ओर।
पशु पक्षी अरु जीव जंतु सब निज नीड़ों हैं भाग छिपे।
वसुधा से अवकाश मांग दिनकर आनन हैं छिपा लिये।
हैं बदहाल सगर नर नारी तन मन में है छायी बेहाली।
अमीर दौलत की शमशीर भांजते अपनी करें सुहानी रातें।
ओढ़ मुफलिसी का आँचल निरधन भी काटें सरदीली रातें।
कोहरे से लिपटा है आसमान हो रही हैं बरफीली बरसातें।
माँ बेटी इक चादर में लिपटे सरदी से है राहत की चाहत।
मोमिया अखबार कचड़ा समेट अर्पण अग्नि देव को करते।
शायद इससे कुछ ताप मिले तन में कुछ गरमी आ जाये।
धूल-धुवाँ की कछु फिकर नहीं पहले तो अपनी जान बचायें।
अमीर जूंठन कुछ निर्धनों को बांट उनमें भी कुछ ताप भरायें।


रचनाकार- राजेश कुमार, कानपुर


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