स्वच्छता अभियान का सच -एक कविता
स्वच्छता अभियान का सच
बढ़ता जन सैलाबी दानव सब
संशाधन लीले जाये।
मंहगाई की मार खायें जरुरते
सुरसा सा मुँह बाये।
फटे चीथड़ों से बनी झोपड़ी
में है निजधाम बनाये।
बसर हेतु घर नहीं है फिर शौचालय
कहाँ से लाये।
नर नारी सब के तन मन में तो
लाज शर्म विराजे।
पर करें शौच खुले में लाज शर्म
सब भूल ही जाये।
खुली जगह रेलपथ नाली नैन
झुका शौच कर आये।
ऊंच-नीच की बड़ी दीवारें
उदर भरण भारी हो जाये।
सरकारी सफाई अभियान मैला को
धूल से ढकवाये।
नेता अफसर खायें मलाई
कागजात में करें सफाई।
दूषित मन से काम करें जब
कैसे पूरी होये सफाई।
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