शरद ऋतु- एक कविता

शरद ऋतु

बरखा गयी दीवाली बीती, गरमी उमस भरे दिन बीते।
दस्तक दे दी शरद ऋतु ने,कूलर पंखे सब शांत हो गये।
आसमान में छाये कुहासा,दिनकर भी अब शांत हो गये।
जैकेट कोट शाल सब डाले, गुलूबंद कानों में हैं लिपटाये।
गरम लिहाफ रजाई ओढ़ें, दंतुलियां सबकी बज-बज जायें।
बनाते रोज लिहाफ रजाई,पर अपनी खातिर नहीं मयस्सर।
अमीर गरीब की बनी है खाई,कहाँ से लायें अपनी रजाई।
दो जून पड़े रोटी के लाले, खुले आसमान में रातें काटें।
करते निश-वासर मजदूरी, पर मँहगाई में सब जर जाये।
लकड़ी सरकारी अलाव की,घर धनपतियों के ही दहकाये।
कुछ गरमी मजलूमों में बांटें,उनकी रातें भी कट जायें।

रचनाकार- राजेश कुमार,  कानपुर

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