खुशबू का व्यापार-एक कविता
खुशबू का व्यापार
खुशबू का व्यापार करें, और पौध
लगायें फूल खिलायें।
खिलें फूल फिर आयें बहारें,
सकल जगत रंगीन बनायें।
तितली भौंरे पंछी झूमें,
मधुर मधुर मधु फिर उपजायें।
मधुर सुरभि महकाये जग को, दूर
फलक में छा जाये।
गेंदा गुलाब फूल चम्पा के, निज
मुस्काने सब फैलायें।
आती जाती रहें बहारें, षड्ऋतु
चक्र यों ही चलता जाये।
महके चमन फूल मुस्कायें,
कायनात में खुशियाँ छायें।
फुलबगिया सी हरी भरी धरा हो,
नैनजोत भी बढ़ जाये।
खुद महकें अरु जग भी महके, शुभसंदेशा
सबमें पहुँचायें।
उतार लायें इंद्रधनुष धरती में
सतरंगी दुनिया बन जाये।
हँसी-खुशी से जीवन काटें,
अपना जीवन सफल बनायें।
रचनाकार- राजेश कुमार, कानपुर
टिप्पणियाँ