अकेला- एक चतुष्पदी कविता


अकेला- एक चतुष्पदी कविता

मुखिया नेता रवि भूप केसरी एक अकेला सब पर भारी।
बनकर अनुचर सब चलते जाते देख रही है दुनिया सारी।
कठिन राह मंजर दुष्कर हो पर कदम नहीं जो थम जायें।
शातिर बैरी कुटिल इरादे पर विजय ध्वजा ये ही फहरायें।

रचनाकार- राजेश कुमार, कानपुर

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

बिजली के खंभे पर पीपल का पेड़ - एक कविता

एक कड़वा सच- एक विचार