तितली- एक कविता
तितली- एक कविता
रंग-बिरंगी तितलियाँ हैं फूल-फूल पर ये मंड़रातीं।
इठलाते बलखाते उड़ें सबको ही ये प्यारी लगतीं।
तितली जैसी बालायें हैं रंग-रूप से सब ललचातीं।
इच्छायें तितली हैं मन की प्यास नहीं बुझ पाती।
इत-उत डोलें भागें यह मृगमरीचिका सी भरमाती।
चाह रखें धनवान बनें निशि-दिन का चैन गंवाती।
सुंदर मुखड़े की चाहत में अपनी सूरत ये भुलवाती।
आशाओं की भरी पिटारी क्या-क्या ये नहिं करवाती।
सन्मुख ज्ञानीजनों के तितलियाँ बेदम हो रह जाती।
रचनाकार- राजेश कुमार, कानपुर
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