उतरा दारू भूत-एक कविता

उतरा दारू भूत-एक कविता

सूट-बूट और टाई लगाते,
      रोज सबेरे दफ्तर जाते।
रोज शाम को दारू पीते,
      देर रात ये घर को आते।
दारू पीते हंगामा करते,
      घरवालों पे रौब जमाते।
रोज-रोज के हंगामों से,
      सबका ही वो चैन गंवाते।
बीबी रणचंडी हो इकदिन,
      बाबूजी की खबर जो लेती।
आगे आगे बाबूजी भागे,
      झाड़ू लेकर बीबी दौड़ाती।
हुयी पिटायी झाड़ू से जब,
      दारू भूत उतर फिर भागा।
कान पकड़ माफी फिर मांगे,
      तौबा दारू से कर डाले।
रचनाकार- राजेश कुमारकानपुर

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