हाथों में बचपन-एक कविता
हाथों में बचपन-एक कविता
प्रभु का जब आशीष
मिले कुल में लल्ला-लाली बन दस्तक दे जाये।
सुनकर लल्ला-लाली
की किलकारी सब कुनबा जन हरषित हो जाये।
हाथों में लल्ला-लाली
यूँ शोभित होते ज्यूं फूलों की कलियां मुस्काये।
इन सबकी इक
मुसकान की खातिर मात पिता सब बलि-बलि जाये।
छायी उदासी थकी
हो काया ये जो देखें मुस्काये मन निहाल हो जाये।
लल्ला-लाली बिन
आंगन सूना नयना अंसुवन भर छलक-छलक जाये।
खुलते किस्मत के
ताले आते ही इनके अनमोल खजाना सब पा जाये।
हाथों में बचपन आज
हंसे खेले कल के जग तारनहार यही बन जाये।
रचनाकार- राजेश
कुमार, कानपुर
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