एक सुविचार-एक लेख

एक सुविचार
बुजुर्गों का सम्मान 
"जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी"
माता और मातृभूमि स्वर्ग से बढ़कर हैं।यह हमारे पड़ोसी देश नेपाल का आदर्श वाक्य भी है।
"यत्र नार्यस्तु पूजयन्ते तत्र रमन्ते देवता"
जहाँ नारियों की पूजा होती है वहाँ देवता निवास करते हैं।
ऐसे ही अनगिनत उद्धरणों द्वारा माँ, नारियों और जन्म भूमि के महत्व को हिन्दू धर्म में दर्शाते हुये इनका महिमामंडन किया गया है।
इसलाम धर्म की पवित्र पुस्तक कुरान 46:15- में भी अपने माता-पिता के प्रति दयालु रहने की शिक्षा दी गयी है।जो दर्द तुम्हारे जन्म के समय माँ ने सहन किया है उसका बयान करना नामुमकिन है।
मुहम्मद हजरत अली कहते हैं,"कभी भी माँ से ऊँचे स्वर में बात नहीं करनी चाहिये क्योंकि उसी ने तुम्हें बोलना सिखाया है।"
ऐसी मिश्रित सनातनी धर्मों वाले भारत देश में आज नारियों का दशा बहुत ही वीभत्स रूप धारण कर चुकी है।हम अपनी सनातनी परम्पराओं में धूल डाल रहे हैं।जब कि विदेशों में इन्हें शाश्वत रूप से अपनाया जा रहा है।इंडोनेशिया एक ऐसा ही देश है, जहाँ के स्कूलों में एक विशेष दिन बच्चों की माताओं के लिये आयोजित किया जाता है।इस दिन स्कूल के बच्चों की सभी माताओं को आमंत्रित किया जाता है।इस दिन सभी बच्चे अपनी माताओं के चरणों की धुलायी-सफायी करते हैं।यह वहाँ की स्वस्थ परम्परा है जिसका परिणाम है कि इस देश में एक भी वृद्धाश्रम नहीं है।
यह आज के विकसित समाज व भाग-दौड़ भरी जिन्दगी में एक सार्थक प्रयास है।माता जब असहनीय दर्द सहन करती है तब उसके बच्चे को जीवन मिलता है।आज हमारे भारतीय समाज में नारियों की दशा बहुत ही सोचनीय है।कानून बनाकर पालन करना व करवाना तो नामुमकिन कार्य है।क्योंकि अधिसंख्यक मामले तो खुलकर सामने ही नहीं आ पाते हैं।अतः आवश्यकता इस बात की है कि सुधार कार्यों को रक्तबीज की भांति ही बचपन में ही प्रतिरोपित किया जाये जैसा कि इंडोनेशिया में किया जा रहा है।जिसका परिणाम है कि वहाँ का जनमानस वृद्धों और माता-पिता की महत्ता को समझकर आत्मसात कर चुका है।उन्हें किसी वृद्धाश्रम में भेजने की जरूरत ही नहीं महसूस होती है।हम इंडोनेशिया जैसे देश से सबक सीख कर उनकी जैसी या उससे भी अच्छी परम्पराओं को अपने स्कूलों में लागू करा सकते हैं।




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