त्रिआयामी(3डी)-प्रिंटेड एयरवे स्प्लिंट तीन बच्चों की जान बचायी गयी।
त्रिआयामी(3डी)-प्रिंटेड
एयरवे स्प्लिंट तीन बच्चों की जान बचायी गयी।
3 डी
प्रिंटिंग तकनीक चिकित्सा के क्षेत्र में नई नहीं है।इसका उपयोग सुनने वाली मशीन
से लेकर दंत प्रत्यारोपण तक सब में किया गया है।लेकिन अभी तक इस तकनीक का प्रयोग
विकसित हो रहे बच्चों में लागू करना एक चुनौती थी।हालांकि,हाल में ही यह बदलाव आया
है,क्योंकि शोधकर्ताओं ने तीन बच्चों जो स्वसन क्रिया में दिक्कत के कारण मौत से
जूझ रहे थे उनके वायुमार्ग में 3 डी- प्रिंटेड स्प्लिंट लगा कर उनको जीवनदान दिया
है।इसमें यह भी उल्लेखनीय है कि उनके शारीरिक विकास के साथ यह डिवाइस भी अपना आकार
बढ़ाने में सक्षम है। मिशिगन विश्वविद्यालय के एक बाल रोग विशेषज्ञ और एक सह लेखक
के रूप में कार्य करने वाले ग्लेन ग्रीन के अनुसार इस प्रकार का विशेष रूप से
डिजाइन किया गया 3 डी- प्रिंटेड स्प्लिंट
डिवाइस बच्चों को बीमारी में राहत देने के साथ ही उनके शारीरिक विकास के साथ इसके
आकार में वृद्धि कर सकेगी।यह अध्ययन एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में साइंस ट्रांसपेर्शिकल
मेडिसिन में प्रकाशित हुआ है।इसके अलावा उन्होंने कहा कि पहले बच्चे में यह प्रत्यारोपण उसके ठीक
होने तक तीन साल कार्य कर सकने में सक्षम है।इस अध्ययन में शामिल सभी तीनों बच्चे
श्वासनलिका संबंधी ब्रोन्कोमोलाशिया नामक मौत से जूझने वाली दुर्लभ बीमारी जिसमें
स्वसन क्रिया बिगड़ जाती है,से पीड़ित थे।दुनिया भर में इस प्रकार की स्थिति 2,000
बच्चों में से एक को होती है।आम तौर पर गंभीर मामलों में जब उनकी उम्र तीन साल की होती
है, उनके वायुमार्ग पर्याप्त रूप से सक्षम नहीं होते और उनकी मृत्यु हो जाती है। इस
अध्ययन में तीन बच्चों में यह स्थिति सामने आई थी।सभी महीनों से गहन देखभाल
इकाइयों (आई सी यू)में रहे थे औरउनके बचाव के लिये जो भी सम्भव था वह किया जा चुका
था।वास्तव में इन बच्चों
को इस अध्ययन में शामिल होने का एकमात्र कारण यह है क्योंकि उनके वायु मार्ग इस
तरह के खराब आकार में थे कि एयरवे स्प्लिंट उपचार को ही आखिरी उपाय के रूप में
माना गया। "एक बच्चे को उसके पेट में कोई भोजन ही नहीं रुकता था और सर्जरी के
बिना उसकी कुछ हफ्तों में ही मृत्यु हो जाती।अध्ययन में शोधकर्ताओं ने इन
बच्चों में से प्रत्येक के लिए छिद्रपूर्ण हानिरहित पदार्थ पॉलीकैफ़्रैक्टोन कहा
जाता है से बने स्प्लिंट लगाये जो समय के साथ शरीर में घुल जाते हैं।स्प्लिंट इस
प्रकार डिजाइन किए गये थे कि वह वायु मार्ग के बाहर लगाये जायें जिससे वायुमार्ग
को खुले रखने में मदद मिल सके। स्प्लिंट प्रत्येक मरीज की शारीरिक रचना के अनुरूप
डिजाइन किये गये थे।हमने रोगी के वायुमार्ग का डिजिटल मॉडल बनाकर उसमें स्प्लिंट को
फिट करके देखा कि वास्तव
में स्प्लिट कैसे काम करेगी।मरीज के एयरवे में फिट होकर स्प्लिट कैसे काम करेगी यही
पहला गुणवत्ता वाला कारगर उपाय था, यूनिवर्सिटी के जैव-चिकित्सा इंजीनियर स्कॉट
होलिस्ट ने बताया ।जब यह प्रत्यारोपण मुद्रित करने के लिए समय आ गया, तो शोधकर्ताओं ने
"लेजर सिटरिंग" का इस्तेमाल किया - एक प्रक्रिया जिसके द्वारा मशीन एक
परत के आधार पर एक परत पर एक पाउडर पिघला देता है ताकि एक 3डी संरचना बना
सके।प्रत्येक प्रत्यारोपण को प्रिंट करने में एक से तीन दिनों का समय लगा, शोधकर्ताओं का कहना
है।एक बार ऐसा किया गया वैज्ञानिकों
ने डिवाइस पर परीक्षणों की एक बैटरी चलाने के बाद उसकी मजबूती को सुनिश्चित
किया।क्योंकि खामियों की लागत बहुत ज्यादा थी - सामग्री की लागत लगभग 10 डॉलर
प्रति टुकड़ा - शोधकर्ताओं ने शिशुओं पर सर्जरी करने से पहले उन्हें बच्चों के
ट्रेचिया और ब्रॉन्की के 3 डी मॉडल पर कई बार स्थापित करने का अभ्यास करने में
सक्षम थे।सभी तीनों सर्जरी सफल रहीं, सर्जरी के बाद बच्चों के सी टी स्कैन किये
जाने पर पता चला कि वायुमार्ग ठीक से बढ़ रहा था।आज तीन बच्चो के वायु मार्ग ठीक से खुल रहे हैं –
इसमें वह बच्चा भी शामिल है जिसको तीन साल पहले प्रत्यारोपण किया गया था। ग्रीन द
वर्ज ने बताया कि यह एयरवे स्प्लिंट सर्जरी के बाद तीन-चार सालों में घुल जायेंगे
और बच्चे स्प्लिंट फ्री हो जायेंगे।
प्रस्तुति-राजेश कुमार
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