एक एहसास- एक कविता
एक एहसास
मैंने चाहा था, चमन में बहारें आयें।
खिलें फूल कलियों में मुस्कानें छायें।
दमके ये चमन सारी फिजायें महकें।
मैंने बोये थे बीजे फूलों की खातिर।
लगायी थी कलमें,खुशबू की खातिर।
मन में कसक न थीं कमियां कोई।
पर फिर भी उनमें फूलों की जगह।
छा जाती ही रही कांटों की बहारें ।
जो भी चाहें दिल में,हसरत पालें।
ये जरूरी नहीं कि हों हसरतें पूरी।
हसरतें पूरी हों या अधूरी रह जायें।
पर इसका मतलब तो ये नहीं।
कि फूलों की जगह कांटे बोयें।
गर चाहें हो अच्छा सा सफर।
न हो तूफानों से कोई टक्कर।
गांठें दोस्ती उसे हमराह बनालें।
रचनाकार- राजेश कुमार, कानपुर
खिलें फूल कलियों में मुस्कानें छायें।
दमके ये चमन सारी फिजायें महकें।
मैंने बोये थे बीजे फूलों की खातिर।
लगायी थी कलमें,खुशबू की खातिर।
मन में कसक न थीं कमियां कोई।
पर फिर भी उनमें फूलों की जगह।
छा जाती ही रही कांटों की बहारें ।
जो भी चाहें दिल में,हसरत पालें।
ये जरूरी नहीं कि हों हसरतें पूरी।
हसरतें पूरी हों या अधूरी रह जायें।
पर इसका मतलब तो ये नहीं।
कि फूलों की जगह कांटे बोयें।
गर चाहें हो अच्छा सा सफर।
न हो तूफानों से कोई टक्कर।
गांठें दोस्ती उसे हमराह बनालें।
रचनाकार- राजेश कुमार, कानपुर
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