पढ़ें बेटियाँ - बढ़ें बेटियाँ- एक कविता



पढ़ें बेटियाँ - बढ़ें बेटियाँ

घर आँगन की फुलवारी में,दो ही किस्म के फूल हैं खिलते।
लाली लल्ला दोनों ही हैं,मात पिता की आँख के तारे।
बेटा बेटी होते प्यारे,जननी जनक के दुलारे होते।
एक समान हैं बेटा बेटी ,लाड़ दुलार एक सा पाते।
साथ साथ हैं पलते बढ़ते,फुलबगिया को हैं महकाते।
गर समान ही पालन पोषण,लाली बढ़ती नाम कमाती।
बेटे से परिवार सँवरता,पर बेटी तो दो परिवार सँवारे।
घर में भी वो करे पढ़ाई,माँ के काम में हाथ बंटाये।
अगली पीढ़ी का सृजन है उससे,सपने वो साकार है करती।
मूरख और अभागे हैं वो,बेटा बेटी में जो भेद हैं करते।
इंदिरा मेधा अरुंधती बन,जग में ऊँचा नाम कमायें।
सिंधु गट्टा बनें सानिया ,दुनिया से ये जा टकरायें।
बनें सुनीता और कल्पना,परी लोक की सैर कर आयें।
अंशिका जो है मेरी बेटी,पढ़ लिख कर है नाम कमाया।
पायी डिग्री बनी डाक्टर,सेवा कर है यश फैलाया।
दुनिया के हर कोने में है,वो अपना परचम लहराये।  

रचनाकार- राजेश कुमार,  कानपुर

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