रोहिंग्या मुस्लिम शरणार्थी- एक कविता


रोहिंग्या मुस्लिम शरणार्थी
मानव मानव में कहाँ भेद,सब धरती की संतानें हैं।
तू हिंदू है तू मुस्लिम है,तू सिख तू निरा इसाई है।
धरती में है जन्म लिया,काया में कोई भेद नहीं है।
तू गोरा है तू काला है,सब भेद हमीं ने बनाया है।
वर्मावासी जो सालों से,परदेशी इकपल में ठहराये हैं।
निज धरा में हुए बेगाने ,पूरी बसुधा ने ठुकराया है।
तानाशाही फरमान दिया,बेघर कर उन्हे भगाया है।
जब अपने ही बेगानों जैसा,तिरस्कार कर बैठे हैं।
नर नारी बूढ़े बच्चे,सब आशाओं से निरख रहे।
कोई भी शरण नहीं देता,सब स्वारथ में बंध बैठे है।
उनके दुखों को जानें अपना,उनके अश्कों को पोंछे सब।
सात पाँच की लाठी भी,इकजन का बोझा बन जाती है।
उनके दुखों को समझें सब,रत्ती रत्ती मिलकर बांटे ।
अंसुवन का करें मोल,हम सब उनमें मुस्कान भरें ।
हिटलर जैसा फरमान दिया,वैश्विक फटकार लगायें।
रचनाकार- राजेश कुमार, कानपुर

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