शक्तिस्वरूपा माँ भवानी-एक कविता
शक्तिस्वरूपा माँ भवानी
नित नव पड़ते आघातों से,
मानवता है सिसक रही।
साम्राज्यवाद अलगाववाद
आतंकवाद के बिषधर पनपे।
भ्रष्टाचार दुराचार औ लूटमार
से जनता है कराह रही।
बढ़ा प्रदूषण कटते जंगल है
मारामारी जनसंख्या की।
इन बढ़ते भारी भारों से
वसुंधरा नित सिसक रही।
बिषमताओं का नागपाश इस जग
को है निगल रहा।
जगज्जननी शक्तिस्वरूपा मैं
तुम्हरा नमन कर रहा।
पुनःभवानी हों अवतरित,दारुण
दुःखों का नाश करें।
दानव जो भी हैं पले बढ़े,
उन सबका वो संहार करें।
अमीर गरीब की ढहें दीवारें,आनन
में मुस्कान भरें।
पलें बढ़ें और पढ़ें
सभी,अज्ञानी तम का नाश करें।
रचनाकार- राजेश कुमार, कानपुर
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