मन की टीस- एक कविता

मन की टीस
मनभावनि प्रिय तुम आय गयीं मन में थी भरी सब टीस हरायी।
थी जब तक तुम आयी नहीं अंखियन में भरी थी उदासी छायी।
मुख बोलत कछु नहिं अँसुआ दृग ढारत मग माहिं परत पग नाहीं।
राह तकत थकती अंखियाँ मन माहि कसक नहिं टारत जायी।

रचनाकार- राजेश कुमार,  कानपुर

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