दो प्रेमी सागर तट पर-एक कविता
दो प्रेमी सागर तट पर-एक कविता सागर तीर बैठ दो प्रेमी इक दूजे के नैनों में खो जायें। इस जग से हैं हुए बेखबर अपनी दुनिया में डूबे जायें। कश्ती उतराती आशाओं की नैनों में प्रेमसमुंदर लहराये। सागर में कश्ती है उतराये लहरें उथल पुथल कर जायें। इक दूजे की आँखों में खोये हुए प्रेम पाश में बँध जाये। आँखों में सजाये सपने सुनहले दूर गगन तक फिर आयें। प्रेम नाव में सवार हुए हैं दो प्रेमी जग सागर में उतराये। ज्वार समुंदर में लहरों का मन की कश्ती भी डगमगाये। सजे ख्वाब मन में दोनों के पर जग से डर कर रह जायें। खुली आँखों से देखें जो सपने पलकों में सिमटा रख जायें। इक दूजे के बाहुपाश में बँधे हुए सारे सपने सच हो जायें। रचनाकार- राजेश कुमार , कानपुर