कान- एक कविता

कान- एक कविता

कानों कान खबर उड़ती है तिल का ताड़ खड़ा करती है।
अफवाहों की आग सुलगती चिनगारी दावानल बनती है।
सुनते गुनते धुनते जाना पर सबको ना दिल से लगाना।
पढ़ना लिखना वाजिब है पर जीवन में भी धारण करना।

रचनाकार- राजेश कुमारकानपुर

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