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मार्च, 2018 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

उमंग-एक कविता

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उमंग-एक कविता लहरें उठें उमंग की प्रियतम आवन का संदेशा जब आये। हूक उठे दिल धक-धक करे पुलकित जियरा मेरा घबराये। प्रियतम संग मिलन करूँ मैं कैसे नयना अँसुआ बरसाये। हाल जिया सखियाँ सब जानें मुखड़ा चुगली कर बतलाये। रचनाकार- राजेश कुमार ,  कानपुर

आज्ञाकारी पति

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आज्ञाकारी पति

विदेशी उपहार

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विदेशी उपहार

नर-मादा की पहचान

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नर-मादा की पहचान

गिरगिट के रंग-एक कविता

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गिरगिट के रंग-एक कविता

एक बहाना

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एक बहाना

ई-मेल गलत पते पर

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ई-मेल गलत पते पर

पोस्टमैन की यादगार विदाई

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पोस्टमैन की विदाई                                                                                                                                     -राजेश कुमार

विश्व गौरैया दिवस पर-एक कविता

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विश्व गौरैया दिवस पर-एक कविता गौरैया वो गौरैया रानी प्यारी हो तुम हो अभिमानी। बनकर श्रम-मूरत तुम सबको श्रम का पाठ सिखाती। फुदक-फुदक इत-उत उड़ती कानों में संगीत घोलती। तिनका चुनती दाना चुगती क्षुधा पूर्ण कर नीड़ सजाती। दूर-दूर तक तुम उड़ जाती पवन देव से होड़ लगाती। चीं-चीं चुँ-चूँ का सुर करती भोर हो गयी तुम बतलाती। अपनी मीठी बोली से तुम सबके दिल को हो हरषाती। संग-संग रहना मिलना-जुलना खेल-खेल में हंसती गाती। कुछ जाहिल दुश्मन बने जो तेरे वे सबके ही दुश्मन हैं। सीख एकता श्रम की जो मानें धरा यही जन्नत बन जाये। रचनाकार- राजेश कुमार, कानपुर

उल्टा चोर कोतवाल को डांटे

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उल्टा चोर कोतवाल को डांटे

सर्वव्यापी ईश्वर-एक कविता

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सर्वव्यापी ईश्वर-एक कविता

आशा की किरण -एक कविता

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आशा की किरण -एक कविता हो राजा या भिखारी रखें आशायें सभी जीते यहाँ है। हसरत मुठ्ठी में जहां हो,बस दो मुठ्ठी अन्न की चाह है। दहशतगर्दी का आलम जहां में चतुर्दिश छा रहा है। वे नहीं मायूस फिर भी जिनको अमन की आश है। रचनाकार- राजेश कुमार, कानपुर

कार्टून की दुनिया -एक कविता

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कार्टून की दुनिया -एक कविता मेरा उदर बहुत बड़ा है कुछ भी हैं हम चट कर जाते। गोल मटोल पेट में मेरे ढेरों लडडू हजम होते ही जाते। बच्चों की इस अलबेली दुनिया के हम चाँद सितारे हैं। मौज मनायें मौज कराते खुश होकर हम खुशियाँ बांटे। छौनों की मुस्कान की खातिर रंग बदलते भेष बदलते। रोते हुओं को हमीं हंसायें खुशियों का सागर छलकाते। वृद्ध बाल युवा जनों को हम अपने करतब दिखलाते। जाति भेद ऊँच नीच नाजाने सब बंधन हम हैं बिसराते। गये रूठ जो नौनिहाल दामन में उनके खुशियां बरसाते। हम हैं टेढ़ी मेढ़ी चालों से,टेढ़ी मेढ़ी राहों में दौड़ लगाते। मुठ्ठी में भर लेते दुनिया दौड़-दौड़ कर हम छुप जाते। रचनाकार- राजेश कुमार ,  कानपुर

पिता की सीख

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पिता की सीख सत्तर वर्षीय पिता अपने जवान पुत्र को आवाज देते हैं, "बेटा नीचे आ जा, धूप बहुत तेज है"।बेटा अनसुनी कर देता है।उनका बेटा तेज धूप में खपरैल की छाजन बनाने में व्यस्त है।उनके दो-तीन बार लगातार आवाज देने पर भी बेटा अनसुनी कर देता है, तो वह परेशान हो जाते हैं।एकाएक वह तेजी से उठकर अपने चार वर्षीय नाती को पास में ही धूप में पड़ी चारपायी में लिटा देते हैं।नाती तेज धूप के कारण जोर-जोर से चीखकर रोने लगता है।जिसे देख कर बेटा तिलमिला कर छत से ही चिल्लाया "ये क्या कर दिया आपने"?पिता शान्त मन से बोले "अपने बेटे की तकलीफ देखकर तू कैसे तिलिमला रहा है।तू भी तो मेरा बेटा है।अब शायद तुझे मेरी तकलीफ का अंदाजा हो गया होगा।" रचनाकार- राजेश कुमार, कानपुर

होली का त्यौहार- एक कविता

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होली का त्यौहार- एक कविता आज है होली का त्यौहार रंगे हैं धरती आसमान संसार। रंगे पुते चेहरों संग झूमते नाचें सब बाल वृदध नर नार। जात-पात ऊँच-नीच की ढही दीवारें रंगे है इक रंग में सारे। बीते होली बाद सभी पर चढ़ा रहे ये रंग लगें इकरंगी सारे। रचनाकार- राजेश कुमार, कानपुर

अन्न दाता किसान- एक कविता

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अन्न दाता किसान- एक कविता मुफलिस होकर जीवन काटूँ तो भी विश्वम्भर कहलाऊँ। वसनहीन दिव्यांग हूँ फिर भी मैं कर्महीन नहीं कहलाऊँ। रखूँ संग दो बैलों की जोड़ी स्वेद कणों संग बीज मैं बोऊँ। कर कर मेघों से विनती स्वेद कणों संग फसल मैं सींचूँ। फसल है बोयी फले भरपूर हो उदर भरण सबका भरपूर। दिनकर मेघा मेरे सब हैं भगवान मेरे तारन हार वही हैं। हो चाहे जेठ दुपहरी या फिर हो भादों की अधियारी। हाड़ जमाती हों पूस की रातें रोक सकें ना राहें मेरी। ऋणी सभी मेरी मेहनत के फिर भी कर्जदार कहलाऊँ। क्षुधा हीन तन वसन हीन है मेरी दुनिया दीन हीन है। रूठी हुयी लक्ष्मीजी मुझसे तो भी नारायण मेरे स्वामी हैं। कृपा लक्ष्मीजी की हो जाये इस चमत्कार का इंतजार है। रचनाकार- राजेश कुमार ,  कानपुर