अन्न दाता किसान- एक कविता

अन्न दाता किसान- एक कविता
मुफलिस होकर जीवन काटूँ तो भी विश्वम्भर कहलाऊँ।
वसनहीन दिव्यांग हूँ फिर भी मैं कर्महीन नहीं कहलाऊँ।
रखूँ संग दो बैलों की जोड़ी स्वेद कणों संग बीज मैं बोऊँ।
कर कर मेघों से विनती स्वेद कणों संग फसल मैं सींचूँ।
फसल है बोयी फले भरपूर हो उदर भरण सबका भरपूर।
दिनकर मेघा मेरे सब हैं भगवान मेरे तारन हार वही हैं।
हो चाहे जेठ दुपहरी या फिर हो भादों की अधियारी।
हाड़ जमाती हों पूस की रातें रोक सकें ना राहें मेरी।
ऋणी सभी मेरी मेहनत के फिर भी कर्जदार कहलाऊँ।
क्षुधा हीन तन वसन हीन है मेरी दुनिया दीन हीन है।
रूठी हुयी लक्ष्मीजी मुझसे तो भी नारायण मेरे स्वामी हैं।
कृपा लक्ष्मीजी की हो जाये इस चमत्कार का इंतजार है।

रचनाकार- राजेश कुमारकानपुर

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