गल्प कथायें

गल्प कथायें
मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है।वह समूहों में रहकर अपने आपको सुरक्षित महसूस करता है।समूह में रहने के और भी अनेकों फायदे है।एक दूसरे को सहयोग प्रदान कर सुख-दुख बाँटना आदि।सूचना क्रांति आने के पूर्व मनुष्य के पास मनोरंजन तथा समय काटने के सीमित साधन थे। जबकि आधुनिक युग में यह सब असीमित है।उस समय काल में समय काटने तथा उपयोगी ज्ञान किस्से कहानियों द्वारा एक से दूसरे व दूसरे से तीसरे में बाँटने का अनवरत क्रम चलता रहता था।इन्हीं किस्से कहानियों का एक स्वरूप था गल्प कथायें,इन कथाओं को आज भी हम लोग किसी न किसी स्वरूप में याद करते रहते हैं।समय काल के चलते गल्प षब्द का अपभ्रंश होकर गप्प हो गया।आज जो भी व्यक्ति ज्यादा बातें करता दिखाई देता है उसे लोग गप्पी कह देते हैं।समूह में बैठकर खाली समय गप्पें मारकर बिताया जाता है।गल्प कथाओं में जो बात कही जाती है वह तथ्यों से परे तथा अविश्वसनीय होती है।जिन्हें किसी भी प्रकार तर्क की कसौटी में कसा जाना सम्भव नहीं है।बस कहानी है सुनते जाओ मजे लेते जाओ।कहानी सुनने के बाद चाहे उसे तार्किकता द्वारा सही मानने की असफल कोशिस करें, बहस करें या फिर भूल जायें।ऐसी ही कहानी लिखने का मेरे द्वारा एक असफल प्रयास किया गया है जिसे मैंने अपने पूर्वजों से सुना है, कहानी कुछ इस प्रकार है।
एक नामी गिरामी पहलवान गाड़ी के पिछले हिस्से में दूसरी गाड़ी के अगले हिस्से(उटरा) को फँसा कर इसी क्रम में 300 गाडि़यों को एक लाइन में लगाकर सबसे पहली गाड़ी के उटरा को अपने कंधे में रखकर सभी गाडि़यों को खींचता चला जा रहा था।उसी समय एक दूसरे पहलवान ने गाडि़यों की इस अनवरत लाइन को बड़े अचरज से देखा। इसके बाद पिछली गाड़ी से आगे की तरफ चलते-चलते गाड़ी खींचने वाले पहलवान तक पहुँचा ।पहलवान को देखकर उसके मन में विचार आया कि मैं सबसे पिछली गाड़ी में अपना पैर रखकर रोक सकूँगा कि नहीं।ऐसा सोचकर उसने सबसे पिछली गाड़ी में अपना पैर रख दिया,उसके पैर रखते ही सभी गाडि़याँ रुक गयीं।पहलवान को अंदाजा हो गया कि मैं इससे कुश्ती की जोर आजमाइश कर सकता हूँ।इस दूसरे पहलवान की अपनी कहानी थी।वह बारह मन सत्तू की गठरी को लेकर कहीं जा रहा था।रास्ते में उसे एक तालाब मिला, थकावट महसूस करते हुए तालाब के किनारे गठरी उतारकर बैठ गया।उसे कुछ भूख महसूस हो रही थी।तो उसने वह सत्तू उस पूरे तालाब में घोल दिया और अपने दोनों हाथों को चुल्लू बनाकर पूरा पी गया।इस पहलवान की गाड़ी वाले पहलवान से कुश्ती लड़ने की इच्छा हुई।अपनी इस इच्छा के साथ उसने पहलवान के सामने मुकाबले के लिये ताल ठोंकी। गाड़ी वाले पहलवान ने कुश्ती का मुकाबला स्वीकार कर लिया।लेकिन उसमें भी एक समस्या थी, उसने कहा मुकाबले को देखने तथा निर्णय लेने वाला भी तो कोई होना चाहिये।उन दोनों ने इसके लिये आस-पास नजर दौड़ाई।तो उन्होंने देखा एक बुढि़या अपने नाती को खाना देने जा रही थी।उस बुढि़या की भी अपनी एक अलग कहानी थी।उसके पास पूरे एक हजार ऊँट थे जिन्हें उसका नाती रोज चराने के लिये ले जाता था।उस दिन सूरज चढ़े उसका नाती सो रहा था जिसे उसने डांटते हुए जगाया और कहा कि तू अब तक सो रहा है यदि तू ऊँट चराने नहीं गया तो मैं तुझे दो-दो पहलवानों से पिटवाउंगी।यह सुन कर उसका नाती डर गया और बिना कुछ खाये पिये ही ऊँटों को लेकर चराने चला गया।तो उन पहलवानों ने अपनी कुश्ती देखने और फैसला करने के लिये बुढि़या से निवेदन किया।इस पर उस बुढि़या ने कहा कि मेरा नाती दिन भर का भूखा-प्यासा है, मेरे पास रुककर कुश्ती देखने का समय नहीं है।यदि तुम्हें कुश्ती लड़ना ही है तो आओ मेरी हथेली पर खड़े होकर लड़ो और मैं देखती चलूँगी।उन दोनों ने ऐसा ही किया।बुढि़या के नाती ने दूर से देखा कि मेरी दादी दो पहलवानों को लेकर आ रही है।तो सुबह की बात याद करके डर गया।उसने सभी हजार ऊँटों को एक गठरी में बाँधा और गठरी को सिर पर रख कर वहाँ से भाग गया।उसे भागते देख एक चील ने उसका पीछा किया।चील पीछा करते हुए वह गठरी अपनी चोंच में टांग कर आसमान में उड़ चली ।एक राजा की रानी अपने महल की छत पर ऊपर की तरफ मुँह करके अपने बाल सुखा रही थी।उसी समय आसमान में उड़ती चील की गठरी छूट कर रानी की आँख में गिर गयी।रानी ने अपनी नौकरानी से कहा कि मेरी आँख में कोई कीड़ा चला गया है इसे जरा निकाल दो।नौकरानी ने वह कीड़ा जैसी गठरी को रानी की आँख से निकाल कर कमर में खोंस लिया।इसके बाद जब अपने घर गयी तो उस गठरी को खाना रखने वाली अलमारी में रखकर भूल गयी।अगले दिन नौकरानी के बच्चे को भूख लगी थी तो उसने खाने की अलमारी से उस गठरी को निकाल कर जमीन पर रखकर खोला।गठरी खुलते ही उससे एक हजार ऊँट बिलबिलाकर निकल पड़े।उसी समय नौकरानी भी कहीं से वापस आ गयी। उसने बहुत ही गुस्से से लड़के की तरफ देखा,  तो मारे डर के उसके लड़के ने वहीं पर पेशाब कर दी।उसके पेशाब की बाढ़ से सारे ऊँट बह कर नाली के रास्ते गायब हो गये ।इस प्रकार इस कहानी का अन्त हुआ।
गल्प कथायें कविता रूप में भी सुनाई जाती थीं।इसकी बानगी निम्नवत् है।
लौकी बूड़ै सिल उतराय ।
                                     नाव में नदिया डूबी जाय ।।
चींटी चढ़ी पहाड़ में नौ मन तेल लगाय ।
                                     हाथी घोड़ा बगल में दाबे ऊँट घसीटे जाय ।।
नाव में नदिया डूबी जाय  ।
        
             अस्सी कोस तक बिछे बिछौना।
                    जँह घुटुवन से पांव समाय ।।
            कजरी बन मां झींगुर बोले ।
                  हाथी का पाद बंद हुइ जाय।।
गल्प कथाओं का उद्देश्य जन मानस की तार्किक बुद्धि को समाप्त करना नहीं बल्कि बिशुद्ध मनोरंजन करना ही था।

रचना पत्रिका 2008 में प्रकाशित

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

बिजली के खंभे पर पीपल का पेड़ - एक कविता

एक कड़वा सच- एक विचार