पनहीं बनी मोबाईल लेलें सेल्फी

पनहीं बनी मोबाईल लेलें सेल्फी
गला-जला दे सर्दी-गर्मी पाँव मेरे पनहिंन को तरस रहे।
सुख-दुख की ना जाने हम अपनी दुनिया में मगन रहे।
सखा-सखी संग हँसते नित खुशियाँ राहों में खोज रहे।
मजलूम निर्धनों के जाये धनपुत्रों से हम कम नहीं रहे।
हरहाल में अपनी खुशी ढूढ़ लें हमसे बेबसियाँ दूर रहे।
राह में मिल गयीं इक पनही कौतुक मन में छाय रहे।
पनहीं ही हमरा मोबाइल है सेल्फी मित्रों संग खींच रहे।
आजादी में बीते वरस बहत्तर पर हमसे सब बेफिक्र रहे।
तारनहार की राह तके राहें जेहि मनहुँ सुधि ध्यान रहे।

रचनाकार- राजेश कुमार, कानपुर

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

बिजली के खंभे पर पीपल का पेड़ - एक कविता

एक कड़वा सच- एक विचार