भाग-दौड़ भरी जिन्दगी-एक कविता

भाग-दौड़ भरी जिन्दगी
धरती पर जब जन्म लिया,
सबने ही पायी सुन्दर काया।
जब पड़ी समय की मार,
पिटा और हो गया पतला।
कोई ऊपर से जमकर ठुका,
फिर बन गया मोटा,
मोटा है परेशान मोटापे से,
पतला होने से पतला हैरान।
फिर भी हैं उनसे  ज्यादा,
उनके शुभचिन्तक हलकान।
दुबला देख मोटे को जलता,
दुबला देख मोटा सिर धुनता।
यारो बेकार समय को हम,
सब ही दोषी ठहराते हैं।
अपने खान-पान से सब तो,
अपनी चाल-ढाल गढ़ते हैं।
यदि जाना चाहें कानपुर,
फिर राह पकड़ें दिल्ली की।
फिर कानपुर जायें पहुँच,
ये बिलकुल ही नामुमकिन है।
रोज की भाग-दौड़ की जिन्दगी,
में खुद के लिये समय निकालें।
जैसा भी हों चाहते हम बनना,
कर डालें कोशिसें कुछ वैसी ही।
फिर अवश्य हो जायेंगी पूरी,
दिल चाहे जो वो सभी मुरादें।
तो अवश्य ही पूरी,

हो जायेंगी सब मुरादें।


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