फलों का राजा- एक कविता

फलों का राजा- एक कविता

बयार बहे पछुवा पुरवइया बाग बगीचे लहराये।
कोयलिया की मीठी बोली सुन जियरा हरषाये।
चहुंदिश अमराइन मा आम लदे खुशबू महकाये।
लखि-लखि फलराज रसाल आम भूल राह जाये।
तान छेड़ें तोता-मैना सब ठिठक-ठिठक रह जाये।
आम का सुगंध स्वाद पाये बैरी मितवा हो जाये।
ये पीढ़ी अगली पीढ़ी सबकी खातिर बाग लगाये।
देख-भाल करें बागों की सब बागबान बन जाये।
सीख ना मानी तो फिर आम पुराणिक हो जाये।

रचनाकार- राजेश कुमार, कानपुर

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