ऋतु - एक कविता

ऋतु - एक कविता

ग्रीष्म ऋतु में तपती वसुधा कायनात जल बिन जल जाये।
वर्षा ऋतु बरसाती अमृत प्यासी वसुंधरा की प्यास मिटाये।
शरद ऋतु ठिठुराती जग को धरा को धवल वसन पहनाये।
ऋतुराज बसंत फैलती खुशबू धरा को बासंती चूनर पहनाये।

रचनाकार- राजेश कुमार, कानपुर

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