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भोर की किरणें- एक कविता

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भोर की किरणें- एक कविता भोर हुयी लालिमा छायी निज किरणें दिनकर फैलाये। निकले रथ पर सूर्य देव प्रकाशमान चहुँदिश हो जाये। ममतामयी प्रकृति का आंचल दूर क्षितिज में लहराये। हरियाली के बिछे गलीचे मोती ओसबिंदु के बिखराये। हेम राशि धरा पर बिखरी शोभा वरन नहीं कर जाये। राह निहारतीं सूनी-सूनी कहीं मुसाफिर नजर ना आये। नजर जाये दूर जहाँ तक नजर में सूनी राहें ही आये। बीती निशा नींद से जागे नवउर्जा को संचित कर लाये। तज आलस कुछ कर्म करें पल-पल जीवन बीता जाये। कल के जो रह गये काज सब आज पूर्ण वो हो जाये। रचनाकार- राजेश कुमार , कानपुर

फलों का राजा- एक कविता

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फलों का राजा- एक कविता बयार बहे पछुवा पुरवइया बाग बगीचे लहराये। कोयलिया की मीठी बोली सुन जियरा हरषाये। चहुंदिश अमराइन मा आम लदे खुशबू महकाये। लखि-लखि फलराज रसाल आम भूल राह जाये। तान छेड़ें तोता-मैना सब ठिठक-ठिठक रह जाये। आम का सुगंध स्वाद पाये बैरी मितवा हो जाये। ये पीढ़ी अगली पीढ़ी सबकी खातिर बाग लगाये। देख-भाल करें बागों की सब बागबान बन जाये। सीख ना मानी तो फिर आम पुराणिक हो जाये। रचनाकार- राजेश कुमार , कानपुर

ऋतु - एक कविता

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ऋतु - एक कविता ग्रीष्म ऋतु में तपती वसुधा कायनात जल बिन जल जाये। वर्षा ऋतु बरसाती अमृत प्यासी वसुंधरा की प्यास मिटाये। शरद ऋतु ठिठुराती जग को धरा को धवल वसन पहनाये। ऋतुराज बसंत फैलती खुशबू धरा को बासंती चूनर पहनाये। रचनाकार- राजेश कुमार , कानपुर