प्रश्न- एक कविता

प्रश्न- एक कविता

करूँ सामना फिर मैं कैसे हर आनन में प्रश्न समाये।
कानन सुरसरि पर्वत खोये झरने सभी गये सुखाये।
जलचर नभचर थलचर पूँछे नीड़ हमारे कहाँ समाये।
वसनहीन वसुन्धरा हुई कैसे वीरानी आँचल पसराये।

रचनाकार- राजेश कुमारकानपुर

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

बिजली के खंभे पर पीपल का पेड़ - एक कविता

एक कड़वा सच- एक विचार