सेतु-एक कविता
सेतु-एक कविता
कानन बीच बहे लघु सरिता देख सभी ही रुक जाये।
सुरसरि के दो कूल भूल कर भी जो मिल ना पाये।
दोनों तीरों को जोड़ सेतु उस पर इक राह बन जाये।
राही तर जाये लघु सरिता राहें सब आसाँ हो जायें।
नवनिर्माण भया जब मेरा रौनक देख सभी हरषाये।
नर-पशु में कुछ भेद न जानूँ जो सवार पार हो जाये।
वीरानी में दिन काटूँ मैं भूले से कोई नजर न आये।
स्वर्णिम क्षणों को मनन करूँ जब मन मेरा हरषाये।
मैं लघु सरिता पार उतारूँ प्रभु भवसागर पार कराये।
रचनाकार- राजेश कुमार, कानपुर
सुरसरि के दो कूल भूल कर भी जो मिल ना पाये।
दोनों तीरों को जोड़ सेतु उस पर इक राह बन जाये।
राही तर जाये लघु सरिता राहें सब आसाँ हो जायें।
नवनिर्माण भया जब मेरा रौनक देख सभी हरषाये।
नर-पशु में कुछ भेद न जानूँ जो सवार पार हो जाये।
वीरानी में दिन काटूँ मैं भूले से कोई नजर न आये।
स्वर्णिम क्षणों को मनन करूँ जब मन मेरा हरषाये।
मैं लघु सरिता पार उतारूँ प्रभु भवसागर पार कराये।
रचनाकार- राजेश कुमार, कानपुर
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