बोझा और प्यार- एक कविता

बोझा और प्यार- एक कविता

कोई बोझा भारी प्यार नहीं जो पीठ में लादें अरु ढोते जाये।
बोझा बना कर जो भी ढोयें उनकी सांसें फूल-फूल रह जायें।
कल-कल बहती नदी प्यार है नख-शिख तक सबको नहलाये।
प्यार तो है डोंगिया प्रिया-प्रीतम की डूब-डूब कर फिर उतराये।
त्यागें कटुता कुटिल बोल प्रीत प्यार के फूल राह में विखराये।
बहें बयारें प्रीत की निश-दिन तन मन सब पुलकित हो जाये।

रचनाकार- राजेश कुमारकानपुर


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