ताला - एक चतुष्पदी कविता

ताला - एक चतुष्पदी कविता

लगे जबानों में ताले अपनी बात कहे ना कोय।
दुष्कर्मों की झड़ी लगी अनाचार निस-दिन होय।
थाती कितनी है धरी ताला का रंग ही बतलाय।
झूरी की तो झोपड़ी वो टटियन से काम चलाय।

रचनाकार- राजेश कुमारकानपुर

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