मेरे भइया- एक कविता


मेरे भइया
अग्रज बना के परमेश्वर ने, मुझ पर ये उपकार किया।
मेरे भइया पिता तुल्य हैं, रक्षक संरक्षक दिग्दर्शक सब हैं।
जब भी हम कोई गल्ती करते, प्यार भरी वह डांट पिलायें।
गर जो मुश्किल आन पड़े, वो हल कर हलका कर देते।
आंधी तूफां अरु कड़ी धूप में, वो शीतल मंद बयार बनें।
राहें जब सगरी मिट जायें, वो खुद ही मेरी राहें बन जायें।
घनी अंधेरी तूफानी रातों में, प्रकाशपुंज बन हमराह रहें।
ढल आई है सांझ जीवन की, वो अब तक मेरी ढाल बने।
कठिन पलों मुश्किल घड़ियों में, भइया ही तारनहार बने।
राम लखन से दोनों मेरे भाई, मैं भरत नहीं हूँ बन पाया।
मैं करता रहता दिन रात दुआयें सबको ही ऐसे भाई मिलें।
रचनाकार- राजेश कुमार, कानपुर

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