धुंध- एक कविता


 धुंध
रवि नैनों से ओझल भए कायनात में धुंध छा गयी।
राही राहों से भटके वो राहें जाने कहाँ गुम हो गयीं।
प्रगति-प्रदूषण साँप-सीढ़ी बने जो सब जीरो कर जाये।
प्रगति बनाये धूल-धुवाँ फिर प्रगति धुवाँ-धुवाँ हो जाये।
रचनाकार- राजेश कुमार, कानपुर

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