परमाणु बम-एक कविता

परमाणु बम
सिरजनहार हमारे प्रभुवर सुंदर सुंदर काया दीन्हें।
हरी भरी वसुंधरा औ कायनात सब सुंदर दीन्हें।
पशु पक्षी औ जीव जंतु न्यारे सब उपवन दीन्हें।
रचा सयाना ये मानव दिल दिमाग हैं न्यारे दीन्हें।
स्वार्थ साध मानव ने सब उपहार हड़प कर लीन्हें।
वो बैठा जिस शाखा पर मूरख उसे काट है दीन्हें।
यमदूतों को न्योता देकर अपनी मौत स्वयंवर कीन्हें।
पर्वतराज हिमालय जैसे ढेर बमों के ठाढ़े कर दीन्हें।
महाकाय परमाणु बमों के महती ढेर बना है लीन्हें।
बन बैठा ये भस्मासुर औ खतरे मोल खड़े हैं कीन्हें।
कंपकर रह जाये धरा जौ एक धमाका बम का कीन्हें।
नाश हिरोसिमा नागाशाकी का सबको विसरा है दीन्हें।
घाव हरे उन विस्फोटों के गयी सदी में जो हैं दीन्हें। 
दर दीवार ढहायें सगरी भाईचारा से नाता कर लीन्हें।
रचनाकार- राजेश कुमार, कानपुर

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