भारतीय रेल और हमारी संस्कृति एक प्रसंग
भारतीय रेल और हमारी संस्कृति
अभी हाल में ही हमारे भारत देश में नदियों को
जीवित मानव मानते हुए उन्हें संवैधानिक अधिकार प्रदान किये गये हैं।नदियाँ
युगों-युगों से मानव संस्कृति की ध्वज वाहक बन कर इस सृष्टि को सराबोर करती रहीं
हैं।इस श्रंखला को यदि हम आगे बढ़ायें तो भारतीय रेल का भी महत्वपूर्ण स्थान है।नदियों
की भांति भारतीय रेल भी दशकों से भारतीय संस्कृति की ध्वजा थामने का कार्य कर रही
है।इस संदर्भ में एक कहानी प्रस्तुत की जा रही है।
शिवाजी अपने घर के बाहर एक पेड़ के नीचे चारपाई
बिछा कर लेटे हुए थे।उनका घर रेलवे लाइन से कुछ दूरी पर था।सामने से एक तेज रफ्तार
रेलगाड़ी गुजर रही थी।उनके बगल में ही सात-आठ वर्ष की उम्र के कुछ बच्चे रेलगाड़ी
को देखकर टा-टा,बाय-बाय करते हुए बड़ी प्रसन्नता से हाथ हिला रहे थे।सभी बच्चे हम
उम्र थे।उन सबकी आँखों में सामने से दौड़ती हुई रेलगाड़ी को देखने,और उसकी ओर हाथ
हिलाने का अपना एक अलग ही अंदाज व उत्साह झलक रहा था।यह सब देखकर शिवाजी अपनी
पुरानी यादों में खो गये।दशकों से पीढ़ी दर पीढ़ी उनका परिवार इसी गाँव में रह रहा
था।उनके गाँव का नाम किशनगाँव था, जो महाराष्ट्र प्रदेश के दूर-दराज इलाके में बसा
था।खेतों के बीच बसा गाँव जहाँ पर प्याज,गन्ना, केला,मसूर जैसी नकद रकम देने वाली
फसलें उगायी जाती थीं।अपने बचपन की याद करते हैं वह, जब उनकी उम्र इन्हीं बच्चों
के समान रही होगी।दौड़ती हुई रेलगाड़ी देखने का गजब का उत्साह रहता था।उस जमाने
में मुश्किल
से एक-दो जोड़ी यात्री रेलगाड़ियाँ इनके गाँव के सामने से गुजरती थीं।उस समय इकहरी
रेलवे लाइन बिछायी गयी थी, जो कि वर्तमान में दोहरी की जा चुकी है।अब तो रेलगाड़ियों
की संख्या में भी अभूतपूर्व बढ़ोत्तरी हो चुकी है।उस समय इनके गाँव को गाँव कहना
उचित नहीं होगा, क्योंकि वह मात्र दस-बारह घरों का पुरवानुमा गाँव हुआ करता था।हम
लोग घर के अन्दर या फिर खेतों में कहीं भी मौज-मस्ती कर रहे हों,अथवा अपना पसंदीदा
खेल छुपा-छुपी खेल रहे हों।जैसे ही रेलगाड़ी के इंजन की सीटी सुनायी देती सब कुछ
निर्विकार भाव से त्याग कर रेलगाड़ी देखने का मोह उन्हें रेल पटरी तक खींच लाता
था।उसी के साथ उनके हम उम्र बच्चे उनके साथ हाथ हिलाने को तत्पर हो जाते।तेज
रफ्तार रेलगाड़ी को देखकर हाथ हिलाना या फिर उसमें बैठे अन्जान यात्रियों को टा-टा,बाय-बाय
कर उनसे आत्मीय सम्बन्ध स्थापित करना यह सब क्या था।पूरी उम्र बीत जाने के बाद आज
तक शिवाजी की समझ में नहीं आ पाया था।यह सब करना उन्हें किसने सिखाया, किसने
प्रेरित किया कोई नहीं जानता।क्योंकि समय के साथ पीढ़ी दर पीढ़ी यह परम्परा जारी
है।यह भी सम्भव है कि उनके बचपन के पहले की पीढ़ियों ने अनायास ही इस परम्परा को
जन्म दिया होगा।सैकड़ों पहियों के साथ रेलपटरी पर दौड़ने वाली रेलगाड़ी बीते जमाने
में किसी कौतूहल व चमत्कार से कम नहीं रही होगी।रेलयात्रा की शुरूवात के समय तो
चौबीस घंटों में एक-आध बार ही रेलगाड़ी वहाँ से गुजरती होगी।जिसे देखने व हाथ
हिलाने को बाल मन उतावला हो जाता होगा।भारतीय रेल को जीवन रेखा के रूप में भी माना
जाता है।जो भारत के दूर-दराज, कोने-कोने को एक दूसरे से जोड़कर रखने का महत्वपूर्ण
कार्य भी करती है।यह अपने-आप में चलती-फिरती संस्कृति है, जो तमाम संस्कृतियों को
अपने अंर्तह्रदय में समाहित कर सकने की क्षमता रखती है।भारतीय रेल आम जन-जीवन के
यातायात का साधन है जो बहुत कम खर्च के साथ सर्वसुलभ है।
शिवाजी सेवानिवृत्त सरकारी कर्मचारी हैं।वह करीब
दो दशक पूर्व आयुध निर्माणी से सेवानिवृत्त हुए थे।अपने सेवाकाल में उन्होंने चार
दशक बिताये हैं।अपनी करीब चार दशकों की सेवा के दौरान वह भारत के कोने-कोने में
स्थापित कई आयुध निर्माणियों में कार्य कर चुके हैं।इस दौरान उन्होंने अपने प्रदेश
के अतिरिक्त उत्तर प्रदेश,बंगाल व तमिलनाडु जैसे प्रदेशों में स्थापित आयुध
निर्माणियों में कार्य किया है।उन्हें याद है एक बार उत्तर प्रदेश की यात्रा पर
थे।वह रेलगाड़ी के डिब्बे में खिड़की वाली सीट पर बैठकर सफर कर रहे थे।उस समय शायद
होली का त्योहार या फिर उसके आसपास का समय रहा होगा।उनकी रेलगाड़ी उत्तर प्रदेश के
बीहड़ देहाती गाँव से गुजर रही थी।वह अपनी आँखों को बन्द कर अनमने ढंग से कुछ सोच
रहे थे।कि अचानक छपाक की तेज आवाज के साथ उनका चेहरा कीचड़ से सन गया।अचानक हुए
हमले से वह हतप्रभ रह गये।कीचड़ सने चेहरे के साथ वह वास बेसिन तक गये और पानी से अपने
चेहरे को साफ कर वापस अपनी सीट पर आकर बैठ गये।उन्होंने अपने सहयात्री की ओर
प्रश्नवाचक निगाह डाली।उनका सहयात्री जो शायद उत्तर प्रदेश या फिर बिहार का निवासी
रहा होगा।उसने तुरन्त अपने आपको संभाल कर कहा अरे अभी तो होली का सीजन चल रहा है।विशेष
रूप से होली के त्यौहार के समय तो यह सामान्य बात है।शिवाजी ने स्वयं अपनी आँखों
से देखा व महसूस किया है कि उत्तर प्रदेश व बिहार से गुजरने वाली रेलगाड़ी जब
दूसरे प्रदेशों में पहुँचती है तो देखने वालों को अपने आप पता चल जाता है कि उत्तर
भारत मे होली का त्यौहार अपने चरम सबाब पर है।शिवाजी के मस्तिष्क में जबर्दस्त
झटका महसूस हुआ, उन्होंने विचार किया कि उत्तर प्रदेश तो गंगा जमुनी संस्कृति,
भाईचारे व मेल-मिलाप वाला धार्मिक परम्पराओं वाला प्रदेश है।होली का त्यौहार तो
रंगों का त्यौहार है।उन्होंने सुना था कि भगवान कृष्ण की जन्म स्थली व कर्मभूमि
मथुरा में तो गुलाल व फूलों से होली खेली जाती है।जहाँ पर लोग एक दूसरे को रंगों व
फूलों के माध्यम से अपने प्रेम व भाईचारे का आदान प्रदान करते हैं।रेलगाड़ी में
बैठे यात्रियों व रेलगाड़ी को धूल,कीचड़ व गोबर से अप्रत्यासित ढंग से सराबोर कर
देना, जहाँ पर सँभलने व प्रतिउत्तर देने का कोई अवसर ही न हो यह कैसी परम्परा है।अवश्य
ही परम्पराओं के बीच उनका यह वीभत्स स्वरूप है।
शिवाजी उत्तर प्रदेश की आयुध निर्माणी में अपने
बिताये गये समय को याद करते हैं।निर्माणी का आन्तरिक वातावरण अपने आप में भारत देश
के छोटे स्वरूप को प्रदर्शित करता है, जहाँ पर भारत के लगभग सभी प्रदेशों के लोग
कार्य करते हैं।कमोवेश यही स्थिति सभी आयुध निर्माणियों की है।जहाँ पर दूर-दूर से
विभिन्न प्रान्तों से आये लोग दिन भर एक साथ कंधे से कंधा मिलाकर कार्य करते
हैं।आपसी भाई चारे का बेमिसाल सामंजस्य है।कार्य के दौरान आपस में हँसी-मजाक,छेड़-छाड़
होना स्वाभाविक है, जिसका मजा सभी मिलकर उठाते हैं।एक-दूसरे के खुशी-गम के मौकों
पर बढ़-चढ़ कर साथ निभाते हैं।
शिवाजी की उमर इस समय लगभग 80 वर्ष हो चुकी है।इस
लम्बी उम्र के बीते हुए आठ दशक उनके जेहन में चलचित्र की भांति चलते हुए प्रतीत
होते हैं।उत्तर प्रदेश व अपने महाराष्ट्र प्रदेश दोनों ही प्रदेशों के बच्चों व
लोगों द्वारा रेलगाड़ी व उसमें बैठे यात्रियों के साथ किये जाने वाले व्यवहार पर
वह मनन करने का प्रयास करते हैं।बहुत गहन चिन्तन व मनन के फलस्वरूप वह पाते हैं कि
कीचड़ फेंकने की परम्परा कुछ विकृत मानसिकता वाले व्यक्तियों का कृत्य है।जो
गंगा-जमुनी भाई-चारे वाली संस्कृति को कलंकित करने का कार्य कर रहे हैं।इन चंद
लोगों के कारण पूरी संस्कृति को दूषित मान लेना ठीक नहीं है।भारतीय संस्कृति एक भरे
पूरे गुलदस्ते का स्वरूप है, जिसमें विभिन्न रंगों व खुशबुओं व परम्पराओं का एक सम्मिलित मिश्रण एक साथ देखने को मिल जाता है।
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