धैर्य की परीक्षा- एक कविता

धैर्य की परीक्षा
दुख मुसीबत इक परीक्षा, है धैर्य की जजबात की।
प्यार कितना खोया कमाया,है आपसी सदभाव की,
संयम लगन और हिम्मत,हम जुटा सकते कहाँ तक।
गम के सफर में हम,कहाँ कैसे सँभलते और गिरते।
दुख मुसीबत की धमक, पर जो ठहर सकते नहीं।
मिटाकर के वो अपनी हस्ती,फिर संवर सकते नहीं।
आँधियां तूफांन सह कर,फिर बिखर जाती धरा है।
वो उजाड़े वो संवारे रात दिन,बीते है रात फिर आती सुबह।
आंधियां तूफान अरु ये कायनात,सब तो हैं सगे भाई बहन।
बिगड़ना बनना फिर बिगड़ना,एक ही पहिये के दो आयाम हैं।
आती हैं बहारे फिर दुबारा,तूफानों के गुजर जाने के बाद।
शोहरत औ दौलत कितना कमाया,यह पता चलता है कब।
जब मुसीबतों की पड़ी हो,झम झमाझम घोर बरसात।
दावानल है शांत होता कब,जब उजड़ जाता चमन है।
राख दावानल कि फिर,वसुंधरा का है करती पोषण।
और बारंबार फिर आती बहारें,सज संवर जाता चमन है।
सज संवर जाता चमन है.............................
रचनाकार- राजेश कुमार, कानपुर

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

बिजली के खंभे पर पीपल का पेड़ - एक कविता

एक कड़वा सच- एक विचार