आशीर्वाद व भेंट

आशीर्वाद व भेंट
भारतीय संस्कृति में अनगिनत परम्परायें हैं।जिनका जगह,क्षेत्र व समय के साथ अपना महत्व है।यह परम्परायें युगों व सदियों के अन्तराल में शनैः-शनैः विकसित हुई हैं।अक्सर इनमें गूढ़ अर्थ व उद्देश्य निहित होते हैं, जिन्हें समझ पाना सामान्यजन के बूते के बाहर होता है।आज की भाग दौड़ भरी व्यस्ततम जिन्दगी में इन परम्पराओं की छवि कुछ धूमिल होती जा रही है।फिर भी इनकी चमक मध्यम होने के बावजूद भी किसी न किसी रूप में अभी भी जारी हैं।इन परम्पराओं में एक  भेंट लेना व भेंट देना है।भेंट शब्द के कई अर्थ होते हैं।जब किसी से आमने सामने मुलाकात होती है, तो कहते हैं उनसे भेंट हुई थी।मायके से जब कभी बहन व बिटिया की विदाई होती है तो वह सबसे अश्रुपूर्ण नयनों से गले मिलकर भेंट करती है।कहा जाता है कि अब ना जाने कितने दिनों बाद दुबारा भेंट हो सकेगी।इसके अतिरिक्त जब किसी के घर जाते हैं तो उसके यहाँ खाली हाथ न जाकर कुछ उपहार स्वरूप भेंट देना रहता है।गरीब सुदामा अपने सखा कृष्ण के लिये भेंट स्वरूप तान्दुल(चावल) ले गये थे। इस उदाहरण से इस परम्परा का पुरातन व सनातन स्वरूप प्रदर्शित होता है।इसी श्रंखला में जब मेहमान की घर से विदायी होती है तो विदाई स्वरूप उसके हाथ में कुछ रुपया पैसा रखने की परम्परा है।यह लेन देन की परम्परा उम्र, रिश्ते के पद व रूतबे के अनुसार बड़ा छोटे को भेंट स्वरूप कुछ हाथ में रखते हैं।कई बार औपचारिकतावश या  सम्मान स्वरूप व्यक्ति लेने में संकोच प्रकट करता है, या फिर मना करने का असफल प्रयास करते हैं।इस सबमें निहितार्थ यह है कि गुरुजन विदाई के वक्त अपना आशीर्वाद देते हैं साथ में स्नेह की मूर्ति स्वरूप कुछ रुपया पैसा हाथ में रखते हैं।वर्तमान परिप्रेक्ष्य में सभी रिश्तेदार व इष्ट मित्र अपने अपने स्तर पर सम्पन्न होते हैं।उन्हें किसी से भेंट लेने की आवश्यकता नहीं होती है।और नही उस भेंट से उनके जीवन स्तर में कोई परिवर्तन ही होता है।फिर भी हम मानते हैं कि हमारे बुजुर्गजनों का आशीर्वाद हमारे जीवन में हर क्षण विद्मान रहता है।उनके द्वारा प्रदत्त रुपये पैसे को जब हम खर्च करते हैं तो एक बार फिर उनका आशीर्वाद व स्नेह मूर्तिमान होकर दृष्टिगत होता है।जिसे हम महसूस तो कर सकते हैं लेकिन गूँगे के गुड़ की तरह उसका वाणी से बयान नहीं कर पाना मुश्किल है।भारतीय संस्कृति में विद्मान यह परम्परायें पीढ़ी दर पीढ़ी कायम रही हैं और भविष्य में भी कायम रहेंगी।
प्रस्तुतकर्ता – राजेश कुमार

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