बिजली के खंभे पर पीपल का पेड़ - एक कविता



बिजली के खंभे पर पीपल का पेड़
एफ जी के स्पोर्ट्स ग्राउन्ड के सामने एक बिजली का खंभा है।जिसकी चोटी पर एक पीपल का पेड़ उग आया है।अभी पिछले कुछ दिनों से देखा गया है कि बीच-बीच में जब उसकी डालियां बड़ी हो जाती हैं।तो आरमापुर इस्टेट के कर्मचारियों द्वारा उन्हें काट दिया जाता है।लेकिन पेड़ की जड़ें जमीन के अन्दर तक प्रवेश कर गयी हैं।तो वह पेड़ बार-बार नये जोश से पुनः उठ कर खड़ा हो जाता है।अतः ऐसा मालूम होता है कि मानो प्रकृति मानव शक्ति को चुनौती दे रही हो।बिजली के खंभे की जुबानी कविता कुछ इस प्रकार है।

मैं हूँ एक निष्क्रिय बिजली का खंभा,
लौह रेत सीमेंट से संवरा मेरा गात।
खड़ा अविचल मैं तमाम दशकों से,
निहारता बाट जोहता पथिकों की।
बना हुआ मैं उनका कुतुबनुमा,
देखे हैं मैंने अनगिनत बसन्त।
कड़क ठंड और जलते सूरज ने,
ली है मेरी कठिन परीक्षा।
कभी मुझमें भी बहती थी विद्युत धारा,
जिससे रोशन होती राहें और बस्तियां।
पर क्रूर समय की मार ने,
कर दिया तिरस्कृत,बदसूरत व नाकारा।
एक दिन ना जाने कहाँ से आ बैठा,
इक अनजान पंक्षी वक्त का मारा थका हारा।
क्षण भर विश्राम की खातिर व बदले में,
दे गया अनमोल सौगात अपनी बीट की।
मैं तो था दशकों से बेजान निष्क्रिय,
पर अब मैं भी महसूस करता।
जीवन की हलचल अपने अन्तर्तम में,
कैसे करूँ अदा मैं शुक्रिया उस परिन्दे का।
जिसने शमसान में दिया जलाया आशा का,
समय चक्र और मौसम ने।
दिखलाया अपना चमत्कार,
फूट पड़ी पीपल की कोंपलें मेरी चोटी पर।
दिन पर दिन बढ़ता कोंपलों का आकार,
उसके साथ ही बढ़ती जाती।
उस पर पवन थपेड़ों की मार,
बेचारी सुकुमार लता कब तक।
सह पाती यह वज्र प्रहार,
जो नियति ने तय कर रखा था।
वही हुआ उस लता के साथ,
कर दिया उसे धराशायी।
निर्मम पवन के झोंकों ने,
पर निर्मम पवन भी खत्म नहीं।
कर पायी उसकी जीने की इच्छा,
धराशायी होने के बावजूद भी।
रह गयीं थीं कुछ निशानियां,
मुझ पर उस डाली की।
पुनः अंकुरित हुईं कोंपलें एक दिन,
नव उत्साह नव उर्जा से।
इस बार लता नहीं थी अकेली,
लायी थी साथ में अपनी अनुजाओं को।
क्योंकि उसे लड़ना था पवन थपेड़ों से,
पछाड़ना व धूल धूसरित करना था।
 उसके अभिमान को,
अब वह टकराती और मोर्चा लेती।
विकट पलों में भी पसराती अपनी,
मुस्कुराहट, इतराती मेरी चोटी पर।
तेज पवन के झोंके भी अब ना,
कर पाते उसका बाल भी बांका।
अब तो ऐसा लगता पवन को,
भी हो रहा हो पश्चाताप।
उसने भी डालियों के सामने,
डाल दिये हों अपने सब हथियार।
अब पवन भी कर रही है,
डालियों से भरत मिलाप।
अब वह भी उसे दुलराती फुसलाती,
गिरना, गिर-गिर कर सँभलना।
हर हाल में अपने अस्तित्व ,
को कायम रखना।
पीपल और निर्जीव खंभा हमें,
ना जाने देते कितनी सीख।
आशा, एकता, समरसता व धैर्य,
से जीने की अदम्य इच्छा।
हों कैसे भी विषम हालात,
      ना छोड़ना इक दूजे का हाथ।

हर दम मुस्कुराना और मुस्कुराहट को कायम रखना.........................

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