तीन / समानार्थी - एक कविता
शीर्षक- तीन / समानार्थी
तिनका-तिनका बन बिखर रही,है मानवता हो रही तीन तीन।
भुखमरी आतंक साम्राज्यवाद,हैं मानवता के दुश्मन तीन तीन।
सत्य अहिंसा और धर्म हैं,ध्वजवाहक मानवता के तीन तीन।
स्वर्ग बने यह बसुंधरा, गर तजें लोभ स्वार्थ मद तीन तीन।
रचनाकार- राजेश कुमार,
कानपुर
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